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दुखी भारत

निकलने के लिए आरम्भ ही से छटपटाने लगी थीं। क़ानून के शब्दों का भी सदा पालन नहीं किया गया है। सुधरी हुई सरकार की प्रान्तीय क्षेत्र में और राष्ट्रीय क्षेत्र में सर्वत्र यह सिद्ध करने की चिन्ता प्रतीत होती है कि (क) सुधारों के देने में भूल हुई है। (ख) सुधारों में सफलता नहीं प्राप्त हुई। (ग) सुधारों में वृद्धि करने का कोई कारण नहीं है परन्तु इस बात के लिए कारण है कि जो कुछ दिया गया है वह वापस क्यों न ले लिया जाय? प्रत्येक अवस्था में यह बात स्पष्ट हो जाती है कि राष्ट्रवादियों के हृदय में और विश्व में शान्ति और उन्नति चाहनेवाले अन्तर्राष्ट्रवादियों के हृदय में सुधारों से जो बड़ी आशा थी वह पूरी नहीं हुई।

जब सुधारों की रचना हो रही थी तब मैं अमरीका में था। मांटेग्यू चेम्सफ़ोर्ड रिपोर्ट का मेरे दिल पर जो प्रभाव पड़ा था उसे मैंने अपनी 'भारतवर्ष का राजनैतिक भविष्य' नामक पुस्तक में लिखा था। उस पुस्तक को मैंने अमरीका में प्रकाशित किया था। सुधारों का प्रत्येक अवस्था में भारतवर्ष की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इसकी मैंने उस पुस्तक में विवेचना की थी। मैंने यह भी लिखा था कि पञ्जाब के प्रति किये गये अत्याचार के होते हुए भी अमृतसर की कांग्रेस ने सुधारों को किस प्रकार स्वीकार किया था। अमृतसर का प्रस्ताव एक प्रकार का समझौता था। यह समझौता-जो सुधारों का बहिष्कार करना चाहते थे क्योंकि वे 'असन्तोषजनक, अपूर्ण और निराशाजनक' थे और जो त्रुटियों पर ध्यान न देते हुए उन पर कार्य्य करना चाहते थे-उनके बीच में हुआ था। प्रस्ताव महात्मा गांधी की व्यक्तिगत जीत का फल था। स्वर्गीय लोकमान्य तिलक और स्वर्गीय देशबन्धुदास सुधारों को अस्वीकार करने के पक्ष में थे और अपने विचारों के लिए वे उग्र रूप से लड़े थे।

१९२० ईसवी में परिस्थिति क़रीब क़रीब बिलकुल बदल गई। पञ्जाब के अत्याचारों के सम्बन्ध में हन्टर कमेटी की रिपोर्ट, उस पर पार्लियामेंट में बहस और भारत सरकार की कार्य्यवाही से हमें उस परिवर्तन का प्रथम आभास मिला जो भारत के ब्रिटिश शासकों के हृदयों में आरम्भ हो चुका था। सितम्बर १९२० ईसवी में कांग्रेस ने अपने कलकत्ते के विशेष अधिवेशन में एक बड़े