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विषय-प्रवेश

इस पर महात्माजी लिखते हैं:—

"यह सत्य का उपहास है। पर मैं केवल उसी को ठीक करने का प्रयत्न करूँगा जिसमें मेरी मान-हानि है; दूसरी गलतियों को नहीं। अवसर पर किसी आयुर्वेदिक वैद्य को बुलाने का प्रश्न नहीं था। कर्नेल मैडक को, जिन्होंने मेरा फोड़ा चीरा, यह अधिकार था कि बिना मुझसे बताये और बिना मेरा कुछ खयाल किये वे वैसा कर सकते थे। पर उन्होंने और 'सर्जन-जेनरल' हूटन ने मेरे प्रति कोमल सद्भाव का प्रदर्शन किया और मुझसे पूछा कि क्या मैं अपने खास डाक्टरों की, जिनको वे जानते थे और जो पाश्चात्य चिकित्सा-प्रणाली और चीर-फाड़-विज्ञान में भी निपुण थे, प्रतीक्षा करूंगा। उनकी इस नम्रता और सद्भाव का उत्तर देने में मैं पीछे नहीं हटा। तुरन्त मैंने कहा कि वे बिना मेरे डाक्टरों की प्रतीक्षा किये, जिन्हें उन्होंने तार देकर बुलाया था, चीर फाड़ कर सकते हैं। मैंने यह भी कहा कि चीर फाड़ में बुरा परिणाम होने पर उनके बचाव के लिए मैं उन्हें अपनी लिखित अनुमति दे दूंगा। मैंने यह दिखलाने का प्रयत्न किया कि मैं उनकी योग्यता और सत्यता पर अविश्वास नहीं करता। अपनी निजी इच्छा को प्रकट करने के लिए मुझे यह बड़े सुख का अवसर प्रतीत हुआ।"

लाहौर के विक्टोरिया स्कूल की मुख्य अध्यापिका कुमारी बोस ने भी मिस मेयो के साथ हुई अपनी बातों का मदर इंडिया में झूठा उद्धरण देने के लिए इसी प्रकार उसका विरोध किया है। मिस मेयो ने कुमारी बोस की जिन बातों का वर्णन किया था उनके सम्बन्ध में पूछ ताछ करने के लिए रेवरेंड ए॰ एच॰ पोपले उनले (कुमारी बोस से) मिले थे। रेवरेंड पोपले ने लखनऊ से निकलनेवाले ईसाइयों के मेथाडिस्ट नामक सम्प्रदाय के साप्ताहिक पत्र 'इंडियन विटनेस' में जो लिखा था वह नीचे दिया जाता है:—

"१३२ और १३३ पृष्ठों पर वह लाहौर के विक्टोरिया स्कूल का वर्णन करती है और उक्ति-चिह्नों में मुख्य अध्यापिका कुमारी बोस के वक्तव्यों को उद्धृत करती है। मैंने कुमारी बोस से इसके सम्बन्ध में बातचीत की और मुझे मालूम हुआ कि उक्ति-चिह्नों में छपी बहुत सी बातें बिलकुल नहीं