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दुखी भारत


हुई। आगे कुमारी बोस भारतीय ईसाई कुल की तीसरी पीढ़ी में से नहीं हैं। उसी पृष्ठ के तीसरे पैराग्राफ़ में नीची जातियों के लड़कों के सम्बन्ध में जो वक्तव्य है वह असत्य है और कभी कहा नहीं गया। ऊपरी भाग में वह कहती है कि पुरुष पंडितों को पर्दे की आड़ से पढ़ाना पड़ता है। कुमारी बोस मुझे सूचित करती हैं कि 'हिन्दू बालिकाएँ पुरुष पंडितों से संस्कृत पढ़ती हैं पर पर्दा नहीं किया जाता, और वृद्ध पंडित के सम्बन्ध में जो कहा गया है वह प्रबन्ध अब से ४० वर्ष पहले हुआ करता था।' १३८ पृष्ठ पर स्कूल के उद्देश्य के सम्बन्ध में जो पैराग्राफ है वह सर्वथा असत्य है। मिस मेयो के इस कथन के सम्बन्ध में कि 'भारतवर्ष की अधिकांश स्त्रियाँ सीना-पिरोना जानती ही नहीं' कुमारी बोस कहती हैं कि भारत की स्त्रियों को यह कला शताब्दियों से मालूम है। १३४ पृष्ठ पर उक्ति चिह्नों से अङ्कित यह वक्तव्य कि 'बड़ी होने पर अपने हाथ से वे कदापि भोजन नहीं पकातीं और यह काम बिलकुल गन्दे नौकरों के ऊपर छोड़ देती हैं इसी से रोगों और मृत्यु की अधिकता रहती है' बिलकुल काल्पनिक है। इसके उत्तर में कुमारी बोस कहती हैं कि 'प्रत्येक जाति की स्त्रियाँ नौकरों के होने पर भी अपना भोजन पकाती हैं। किसी भी अच्छे घर के नौकर गन्दे नहीं होते और विशेषकर हिन्दू घरों के तो हो ही नहीं सकते।'

"मैंने इसे अधिक विस्तार के साथ लिखना इसलिए आवश्यक समझा कि यही एक ऐसा विषय है जिसकी परीक्षा मैं कर सका हूँ। और यहाँ हम देखते हैं कि हम मिस मेयो की सचाई की प्रशंसा करने में सर्वथा असमर्थ हैं। यह बहुत सम्भव है कि बिना नाम के अगणित उद्धरणों में भी ऐसी ही झुठाई मौजूद हो।"

विक्टोरिया स्कूल की आर्थिक दशा के सम्बन्ध में भी मिस मेयो ने अपनी सम्मति प्रकट की है इस सम्मति से वह यह दिखलाना चाहती है कि शिक्षित भारतीय अपनी कन्याओं की शिक्षा पर कुछ व्यय करना नहीं चाहते। इस सम्बन्ध में मिस मेयो ने जो बातें लिखी हैं उनकी सत्यता सिद्ध करने के लिए दीवान बहादुर कुंजबिहारी थापर, ओ॰ बी॰ ई॰ ने, जो विक्टोरिया स्कूल के प्रबन्ध से सम्बन्ध रखते हैं, उसे चेलेंज किया है। हम अन्यत्र मिस्टर थापर का पत्र उद्धृत कर रहे हैं।

महात्मा गान्धी और टैगोर ने मदर इंडिया के सम्बन्ध में जो लिखा था वह हम पहले ही उद्धृत कर चुके हैं। दोनों महानुभावों ने उसे झूठे