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दुखी भारत

कर सकता है––जब तक भारतवासियों को वास्तव में वही स्वतंत्रता न दी जाय जो आज कनाडा और अस्ट्रेलिया को प्राप्त है[१]?"

किसी दूसरी शक्ति द्वारा भारतवर्ष के जीत लिये जाने की सम्भावना का खण्डन भी बिना विशेष वाद-विवाद के किया जा सकता है। संसार की परिस्थिति किसी दूसरी शक्ति को भारतवर्ष पर अधिकार न करने देगी। यदि भारतवर्ष स्वतंत्र रहेगा तो योरप की शक्तियों को उससे कोई भय नहीं होगा। परन्तु यदि कोई अन्य शक्ति भारत पर अधिकार करने की चेष्टा करेगी तो योरप की शक्तियाँ स्वयं अपने स्वार्थ के लिए ऐसे कारणों के लिए उसका विरोध करेंगी जो इस अध्याय के आरम्भ में दिये जा चुके हैं। परन्तु हाँ, यदि भारत साम्राज्य के अन्तर्गत ही रहे, जैसा कि वह वर्तमान समय में पसन्द भी कर सकता है, तो वह ग्रेटब्रिटेन के शत्रुओं के विरुद्ध उसके लिए एक बड़ी शक्ति का साधन होगा। परन्तु यदि उसे साम्राज्य से बिलग होने के लिए विवश किया जायगा तो संसार की शान्ति का एक ख़तरा दूर हो जायगा।

युद्ध के पश्चात् से संसार में साम्राज्यवाद और समाजवाद के सिद्धान्तों में बड़ा घोर संघर्षण चल रहा है। युद्ध ने रूस में एक ऐसी क्रान्ति को जन्म दिया है जिसके समान धटना इतिहास में कभी नहीं हुई। योरप के पूँजीवाले साम्राज्यों ने रूसी क्रान्ति का विरोध किया है और सोवियत रूस पर कई प्रकार से आक्रमण किया है। हमें समय समय पर यह बताया गया है कि रूस का सर्वनाश बहुत निकट है फिर भी यह इन समस्त आक्रमणों को पार कर गया है और खूब अच्छी तरह जीवित है। यहाँ तक कि ब्रिटिश-कूटनीतिज्ञों तथा ब्रिटिश वैदेशिक कार्यालय को रूस के

राजनैतिक और आर्थिक प्रभाव को एशिया और योरप दोनों जगह स्वीकार करना पड़ा है। हम बोलशेविक विचारों से सहमत हों या न हों परन्तु यह तो निश्चय है कि सोवियत रूस में जो प्रयोग हो रहे हैं उनका संसार के जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ रहा है। जो कुछ आज योरप और अमरीका में देखने में आ रहा है उससे यह स्पष्ट है कि साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक लहर उठ रही


  1. ए॰ एम॰ पूले-लिखित 'जापान की वैदेशिक नीति' देखिए।