पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/४७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५४
दुखी भारत

यह ज्ञात हो जायगा कि जब तक भारत पुनः स्वतंत्र न हो जाय तब तक इसलाम का न तो उद्धार किया जा सकता है, न उसकी शक्ति बढ़ाई जा सकती है और न उसे योरप के प्रभावों से बचाया जा सकता है। इसलाम मरा नहीं है। यह न मर सकता है और न मरेगा। इसको मेल और शान्ति की शक्ति बनाने का एक मात्र उपाय यही है कि इसकी आन्तरिक दृढ़ता को स्वीकार कर लिया जाय और इसके भावों का आदर किया जाय। इसलामी देशों की राजनैतिक स्वाधीनता के बिना ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं हो सकती और इसलाम के भावी विकास में भारतवर्ष का बहुत बड़ा भाग लेना निश्चय है।

मनुष्यता की उन्नति की ओर देखते हुए, इस बात की उपेक्षा नहीं की जा सकती कि भारत, जिसमें सम्पूर्ण मानव जाति का पाँचवां भाग निवास करता है और चीन, जिसकी जनसंख्या और भी अधिक है, दोनों इस मानव-जाति की उन्नति की दौड़ में सबसे बड़ी रुकावटें हैं। ये दोनों देश इस स्थिति को जानते हैं। दोनों अपनी वर्तमान असमर्थता और अपनी महान शक्ति से परिचित हैं। दोनों उन्नति-चक्र के आन्तरिक अङ्ग हैं। परन्तु एक स्वतंत्र भारत मनुष्यता की उन्नति में और भी बहुत बड़ा सहायक होगा। उत्तर-पूरब में प्रजातांत्रिक चीन, उत्तर-पश्चिम में बली और वीर्यवान् अफगानिस्तान, पीठ की ओर स्वाधीन और उन्नतशील फ़ारस, और उत्तर में हिन्दूकुश के पार बोलशेविक रूल के होते हुए भारत पर मनमाना शासन करने की चेष्टा करना भारी मूर्खता होगी। स्वयं ईश्वर भी चाहे तो ऐसा अधिक समय तक नहीं कर सकता। ब्रिटिश-पार्लियामेंट और भारतीय व्यवस्थापिका सभाएँ अपनी सम्पूर्ण शक्ति सैकड़ों कड़े विधान बनाने में लगावें तब भी यह सम्भव नहीं हो सकता।

विश्व की शांति, अन्तर्राष्ट्रीय प्रेम और सहानुभूति, अँगरेज़ जाति के गौरव, मनुष्य-मात्र की उन्नत्ति, और संसार के आर्थिक मङ्गल के लिए यह परमावश्यक है कि भारतवर्ष में शान्ति के साथ प्रजातान्त्रिक शासन विकसित हो। और अँगरेज़ लोग इस निश्चित बात को जितनी ही शीघ्र समझ लेंगे उतना ही अधिक इस विषय से सम्बन्धित जातियों का कल्याण होगा।