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दुखी भारत


विश्वास करने का कारण बता चुके हैं कि यह 'असंरक्षित, अनियुक्त और असम्बद्ध' स्त्री-पत्रकार राजनैतिक आन्दोलन के उद्देश्य से अमरीका से आई थी। ब्रिटिश साम्राज्यवाद पर चूनाकारी करना उसका उद्देश्य था। और उसी उद्देश्य की पूर्ति में उसने एक लेखक के समस्त गुणों की अवहेलना कर दी। भारत की निरक्षरता, ग़रीबी और रुग्णावस्था के लिए वह सरकार को बिल्कुल दोषी नहीं ठहराती। उसकी समझ में इस समय भारतवर्ष में ऐब के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। और यह इसलिए कि हिन्दू या तो विषयी वन्यपशु हैं, या कुमार्ग-गामी, या दोनों।

आगे के अध्यायों में उसने भारत की सामाजिक दशा का जो चित्र खींचा है उसी का सविस्तर वर्णन है। मिस मेयो के जिस तर्क के अनुसार इस सम्बन्ध में भारत सरकार का कोई उत्तरदायित्व नहीं रह जाता, पहले हमें उसी पर विचार कर लेना चाहिए। क्योंकि वही उसके तर्क का मूल-मन्त्र है।

मदर इंडिया के २३ पृष्ठ पर उसने सर चिमनलाल सितलवाद और महात्मा गान्धी के वाक्य उद्धृत किये हैं। कहा जाता है कि नर्म दल के कट्टर नेता सर चिमनलाल ने कहा था कि 'इस देश के दुःख का कारण यही है कि यहाँ के निवासी स्वयं कोई नया मार्ग नहीं सीख सकते, पुरुषार्थी नहीं हैं और परिश्रम के कार्य्य नहीं सँभाल सकते।'

यह वाक्य महात्मा गान्धी के साप्ताहिक यंग इंडिया के एक वाक्य के पास रक्खा गया है। वह इस प्रकार है—'हम में जो असमर्थता, सोचने की कमी और मौलिकता का अभाव है उसके अपराधी हमारे अँगरेज़ शासक हैं। और हमारा ऐसा सोचना बिलकुल सही है।'

इसके पश्चात् एक और वक्तव्य उद्धृत किया गया है और उसका सम्बन्ध 'भारत के अन्य नेताओं से बताया गया है। वह वक्तव्य नीचे उद्धृत किया जाता है:—

"हमारे उत्साह इस प्रकार विफल क्यों हो जाते हैं? हमने अपनी पारस्परिक प्रतिज्ञाओं, त्यागपूर्ण भ्रातृभावनाओं और स्वतंत्रता के व्रत को इतनी शीघ्र क्यों व्यय कर दिया और क्यों विस्मरण कर दिया? स्वयं हमारा पुंसत्वही इतना कम टिकाऊ क्यों है? हमारे इतने शीघ्र थक जाने और और इतनी कम आयु में मर जाने का क्या कारण है?' फिर अपने ही आप