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मिस मेयो के तर्क


लिए प्रबन्ध किया जाता है। स्वतन्त्र रियासतें नशेबाज़ी दूर करने, जननेन्द्रिय के रोगों की चिकित्सा करने, विवाह का नियन्त्रण करने और जनसंख्या-वृद्धि रोकने के लिए इतना कष्ट क्यों उठा रही हैं, संसार के भिन्न भिन्न राष्ट्रों ने स्वास्थ्य-विभाग की स्थापना क्यों की है? ब्रिटेन में सरकार ने सबको दूध पहुँचाने का काम अपने हाथ में क्यों ले लिया है? सर्व-साधारण के लिए उसने अच्छे और स्वच्छ मकान बनाने का काम अपनी ही देख-रेख में क्यों रखा है? यदि मिस मेयो की धारणाएँ ठीक हैं तो यह सब क्यों किया गया है?

यदि इन उत्तरदायित्व-पूर्ण कार्य्यों को अपने ज़िम्मे लेना संसार के राष्ट्रों का कर्तव्य था तो भारत-सरकार ने इनसे मुँह क्यों मोढ़ा? इसका उत्तर स्पष्ट है। भारत-सरकार विदेशी सरकार है। भारतवर्ष में उसका मुख्य उद्देश्य यह है कि वह इस देश से अधिक से अधिक लाभ उठावे और साम्राज्य के हित के लिए इसकी सब प्रकार की शक्तियों को अपने काम में लावे। भूतपूर्व भारतमन्त्री सर आस्टन चम्बर लेन ने 'सेवाय होटल में २६ मार्च, १९१७ ई॰ को व्याख्यान देते हुए जब कहा था कि भारतवर्ष शेष साम्राज्य का लकड़ी चीरनेवाला और पानी भरनेवाला बनकर रहना पसन्द न करेगा और उसे करना भी न चाहिए तब यह बात स्पष्ट हो गई थी कि उस समय तक भारतवर्ष साम्राज्य के लिए एक लकड़ी चीरनेवाले और पानी भरनेवाले से बढ़ कर नहीं था। उसी दशा में वह आज भी है। भारतवर्ष में ब्रिटिश शासन का सम्पूर्ण आर्थिक इतिहास इस बात का साक्षी है।[१]

इस बात के प्रकट हो जाने पर कि गत २०० वर्षों से अपने साम्राज्य के हित के लिए ब्रिटिश भारत को चूस रहा है, भारत की सामाजिक अधोगति, उसके


  1. आनेवाले अध्यायों में मुझे इसका उल्लेख करने की आवश्यकता पड़ेगी, पर विशेष जानकारी के लिए पाठक मेरी लिखी इँग्लेंड्स डेब्ट टू इंडिया (इँग्लैंड पर भारत का ऋण) नामक पुस्तक देखें। वह पुस्तक थी डब्लू॰ हूबक, न्यूयार्क ने १९१७ में प्रकाशित की थी।