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दुखी भारत


करना; और घरेलू झगड़ों का नर्मी से अन्त करना आदि गृह-शासन की और उच्च जातियों में स्त्री-शिक्षा की विशेष बातें हैं। वे अपनी स्त्रियों के प्रति जो आदर और पवित्र प्रेम प्रदर्शित करते हैं उसका बाह्य रूप भी हमें योरप में नहीं मिलता।"

तो यह है कि इस देश में ब्रिटिश लोगों का अधिकार होने के पश्चात से ही स्त्री-शिक्षा का ह्रास आरम्भ हो गया था। डाकर लीटनर ने जो बातें अपने जाँच पड़ताल में मालूम की थीं उन्हीं के कारण विवश होकर उन्हें इस निश्चय पर पहुंचना पड़ा था। डाक्टर लीटनर को इस ह्रास के जो कारण प्रतीत हुए वे उनकी 'नीली किताब में' संक्षेप में इस प्रकार दिये गये हैं[१]

पञ्जाब में अँगरेज़ों का अधिकार जमने के बाद से स्त्री-शिक्षा का बड़ा ह्रास हुआ है। इसके कारण निम्नलिखित हैं:—

(क) पहले माता बच्चे को पञ्जाबी पढ़ा सकती थी। अब जहाँ जहाँ बच्चे उर्दू पढ़ते हैं, वहाँ वहाँ माता की शिक्षा देने की शक्ति नष्ट हो जाती है।

(ख) धार्मिक भावों के निर्बल हो जाने से प्राचीन पद्धति की पाठशालाओं की संख्या कम हो गई है यही हाल स्त्रियों द्वारा संचालित पाठशालाओं का भी हुआ है।

(ग) पहले बुरे आचरण के लिए स्त्रियों को कठोर दण्ड मिलता था इसलिए आचरण की रक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता था। और स्त्रियों को अधिक शिक्षा और अधिक स्वतन्त्रता देने में कम विरोध हो सकता था। पर हमारे कानून के अनुसार, यदि तुलनात्मक दृष्टि से कहा जाय तो व्यभिचार बड़ी स्वतन्त्रता से किया जा सकता है और इसका परिणाम यह हुआ है कि स्त्रियों की स्वाधीनता के पक्ष में जो भी उद्योग किया जाता है उस पर पुरुष जनता द्वेष से तीव्र दृष्टि रखती है।

(घ) हम लोगों द्वारा दी गई स्त्री-शिक्षा से उच्च कोटि के लोग सदैव बचते थे। क्योंकि यह एक ऐसे वर्ग की स्त्री-शिक्षा से मिलती-जुलती थी जो यद्यपि दोष-पूर्ण नहीं था जैसा कि हम उसे बना रहे हैं, पर सम्माननीय भी नहीं था।

(ङ) सार्वजनिक स्थानों में कन्यापाठशालायें रख कर और 'स्त्री-शिक्षा-प्रचार आन्दोलन के समय की गई समस्त प्रतिज्ञाओं को भुलाकर


  1. उसी पुस्तक से, पृष्ठ १०८-१०९