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पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग.djvu/१८

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द्वितीय खण्ड।



कतलूखां के सामने बीरेन्द्रसिंह ने जो तिरस्कार किया था उसका स्मरण करो–– 'तुम ने मेरे उज्वल कुल में कालिमा लगायी, तिलोत्तमा और बिमला दोनों कतलूखां के उपपत्नी ग्रह में मिलेंगी। संसार की यही गति है! विधना की करतूत ऐसी ही है! रूप, यौवन, सरलता अमलता इत्यादि सब कालचक्र के नीचे पड़कर नष्ट हो जाते हैं।

कतलूखां का नियम था कि जब कोई दुर्ग वा ग्राम पराजय होता था यदि उसमें कोई यौवनवती मनमोहनी पकड़ी जाती तो वह उसकी सेवा में भेजी जाती थी। मान्दारणगढ़ के जय होने के दूसरे दिन कतलूखां ने वहां जाकर बन्दीजनों को यथायोग्य आज्ञा दी और उनकी रक्षा के निमित्त सेना नियोजित की। बिमला और तिलोत्तमा को अपने 'हाथ' में ले आने की आज्ञा दी। इसके अनन्तर और और कामों में लगा रहा। उसने यह सुना था कि राजपूत सेना अपने सेनप जगतसिंह के बन्दी होने का समाचार सुन कहीं आस पास आक्रमण करने के उद्योग में है अतएव तद्विषय उचित प्रबन्ध करने लगा और इसी कारण उसको अपने नवप्राप्त दासी की सेवा के स्वाद लेने का समय नहीं मिला।

बिमला और तिलोत्तमा दोनों दो स्थान पर रक्खी गयीं जिस स्थान में पिताहीन तिलोत्तमा अपने हेमबरण शरीर को धूलिधूसरित कर रही थी उसके देखने की चेष्टा पाठकों के मन में कदापि न होगी क्योंकि बने २ के तो सब साथी होते हैं बिगड़े पर कोई बात नहीं पूछता! बसन्त ऋतु में बारिसंचारित सुन्दर सुगंधमय नवलता को हिलते हुए देख किसका मन नहीं चलायमान होता? वही लता जब किसी आंधी के कारण अपने आधार वृक्ष समेत भूमि पर गिर पड़ती है तो