पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग.djvu/१९

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दुर्गेशनन्दिनी।



वृक्ष को सबलोग देखते हैं लता को कोई नहीं देखता। लकड़हारे लकड़ी काट लेजाते हैं और वह लता पैरों के नीचे कुचल जाती है।

अब जहां चपल, चतुर, रसिक, दुःखी किन्तु धीरधारी मलिन रूप बनाये बिमला बैठी है वहां चलो।

क्या यही बिमला है? है? है? है! यह क्या दशा हुई, माथे में धूलि भरी है। वह बनारसी दुपट्टा क्या हुआ? वह कारचोबी अंगिया भी तो नहीं है। बस्त्र भी मैला हो गया है और कई स्थान पर फटा भी है। शरीर पर कोई आभरण भी नहीं है। आंखें फूल आई हैं। वह कटाक्ष भी नहीं है। मस्तक में घाव कैसा है? रुधिर बह रहा है।

बिमला उसमान की परीक्षा लेती है।

पठान कुल तिलक उसमान सर्वदा युद्ध को अपना साधन और धर्म समझता था और जय सिध्यर्थ कोई उपाय उठा नहीं धरता था किन्तु पराजितों पर निष्प्रयोजन किसी प्रकार का अत्याचार नहीं होने देता था। यदि कतलूखां स्वयं बिमला और तिलोत्तमा के पीछे न पड़ता तो उसमान उनको किसी प्रकार बन्दी न होने देता। उसी की कृपा से बिमला ने अपने मरते स्वामी का मुंह देखने पाया था और जब उसने जाना कि वह बीरेन्द्रसिंह की स्त्री है उस दिन से और भी दया करने लगा?

उसमान कतलूखां का भतीजा था इसलिये वह अन्तःपुर इत्यादि सब स्थानों में जासक्ता था! जहां कतलूखां का बिहारगृह था वहां उसका पुत्र भी नहीं जासक्ता था और उसमान भी नहीं जा सकता था किन्तु उसमान कतलूखां का दहिना हाथ था उसी के पराक्रम से उडिस्सा अधिकार दामोदर नदी