लो दो एक दिन तो कुछ नहीं हो सकता। कतलू खाँ की वर्ष गांठ समीप है उस दिन बड़ा उत्सव होगा। पहरे वाले मारे आनन्द के उन्मत्त हो जाते हैं। उसी दिन मैं तुम को मुक्त करूँगा तुम उस दिन रात को महल के द्वार पर आना यदि वहाँ कोई तुमको ऐसी हो दुसरी अँगूठी दिखावे तो तुम उसके सङ्ग हो लेना। आशा है कि निर्विघ्न निकल जाओगी' आगे हरि इच्छा बलवान है।
बिमला ने कहा परमेश्वर तुमको चिरंजीव रक्खें, और मैं क्या कहूँ, और उसका हृदय भर आया और मुँह से बोली नहीं निकली। आशीर्वाद देकर जब बिमला जाने लगी उसमान ने कहा "एक बात तुम से बता दें अकेली आना। यदि कोई तुम्हारे सङ्ग होगा तो काम न होगा। वरन उपद्रव का भय है।"
बिमला समझ गई कि उसमान तिलोत्तमा को सङ्ग लाने का निषेध करता है और अपने मन में सोची कि यदि दो जन नहीं जा सकते तो अच्छी बात है तिलोत्तमा अकेली जायगी।
बिमला बिदा हुई॥
आठवां परिच्छेद।
आरोग्य।
सदा किसी का दिन बराबर नहीं रहता। किसी को मुख किसी को दुःख यह परम्परा से चला आया है।
समय एकसा नहीं रहता। क्रमशः जगतसिंह आरोग्य होने लगे। यमराज के पास से बच कर दिन २ शक्ति बढ़ने लगी, ग्लानि दूर हुई और क्षुधा लगने लगी जब भोजन किया बल हुआ और उसी के सङ्ग चिन्ता का भी प्रादुर्भाव हुआ।