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पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग.djvu/७९

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द्वितीय खण्ड।



उपकारी का बाल बांका करें!

उसमान चुप चाप घोड़े पर चढ़कर दुर्ग की ओर चला गया। राजपुत्र ने वस्त्र द्वारा आंगन में कुयें से जल निकाल शरीर के रुधिर को धोया और घोड़े पर चढ़े तो क्या देखा कि 'रास' में एक पत्र बंधा है उसके लिफ़ाफे़ पर लिखा था 'दोदिन के भीतर इस पत्र को न खोलियेगा नहीं तो कार्य सिद्ध न होगा।'

राजकुमार ने सोचकर पत्र को कवच में रख लिया और चल खड़े हुए।

लश्कर में पहुंचने के दूसरे दिन एक दूत ने आकर एक पत्र और दिया उसका वृत्तान्त अगले परिच्छेद में लिखा जायगा।'

उन्नीसवां परिच्छेद।

आयेशा का पत्र।

आयेशा लेखनी लेकर पत्र लिखने को बैठी और एक काग़ज लेकर लिखने लगी। पहिले लिखा 'प्राणाधिक' और फिर उसको काटकर लिखा 'राजकुमार' और रोने लगी। आंसू की बून्द जो काग़ज पर गिर पड़ी इसलिये उस काग़ज को फाड़कर फेंक दिया। फिर दूसरे काग़ज पर लिखने लगी किन्तु उसपर भी आंसू टपक पड़ा और उसको भी फाड़ डाला। फिर दूसरे काग़ज पर लिखा। जब पत्र समाप्त होगया उसको पढ़ने लगी और किसी तरह उसको बंद करके दूत के हाथ भेज दिया और आप अकेली सेजपर बैठी रोती थी।

जगतसिंह ने पत्र लेकर पढ़ा।

'राजकुमार!