पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

[७]


सामने और क्या कहूं हमलोग तो स्वभाविक अविश्वासपात्र हैं यदि आप चलकर हमको पहुंचा आइयेगा तो यह हमारा सौभाग्य है किन्तु जब हमारा स्वामी इस कन्या का पिता पूछेगा कि तुम इतनी रात को किसके सङ्ग आईं तो यह क्या उत्तर देगी।

थोड़ी देर सोच कर युवा ने कहा “कह देना कि हम महाराज मानसिंह के पुत्र जगतसिंह के साथ आईं हैं।”

इन शब्दों को सुन कर उन स्त्रियों को बिज्जुपात के घात समान चोट लगी और दोनों डर कर खड़ी हो गईं। नवीना तो शिव जी की प्रतिमा के पिछाड़ी बैठ गई किन्तु दूसरी स्त्री ने गले में कपड़ा डाल कर दण्डवत किया और हाथ जोड़ कर बोली “युवराज! हमने बिना जाने बड़ा अपराध किया, हमारी अज्ञता को आप क्षमा करें।”

युवराज ने हँसकर कहा यह अपराध क्षमा के योग्य नहीं है यदि अपना पता दो तो क्षमा करूं नहीं तो अवश्य दण्ड दूंगा।

मधुर सम्भाषण से सर्वदा रस का अधिकार होता है इस कारण उस सुन्दरी ने हंस कर कहा कि कहिए क्या दण्ड दीजिएगा, मैं प्रस्तुत हूँ।

जगतसिंह ने भी हंस कर कहा कि मेरा दण्ड यही है कि तुम्हारे साथ तुमको चल कर पहुंचा आऊं।

सहचरी को जगतसिंह के सन्मुख नवीना का पता न बताने का कोई विशेष कारण था जब उसने देखा कि ये साथ चलने को उद्यत हैं तो बड़े संकट में पड़ी क्योंकि फिर तो सब बाते खुल जाएँगी। अतएव सिर झुका कर रह गई।

इस अवसर पर मन्दिर के समीप बहुत से घोड़ों के