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पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/२४

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अ० | आजकल मोगल पठानों में बड़ा युद्ध हो रहा है।

वी० | हां कोई भारी आपत्ति आवेगी।

अ० | आवेगी! क्या कहते हो? यह कहो कि अब क्या करना होगा?

वी० | (दम्भ पूर्वक) शत्रु आवेगा तो उस का नाश करूंगा और क्या करूंगा।

परमहंस ने मधुर स्वर से कहा, बीरेन्द्र! तुमसे वीरों के यही काम हैं किन्तु केवल कथन मात्र से जय न होगी, कुछ कर्तव्य भी चाहिये तुम्हारी वीरता में कुछ सन्देह नहीं परंतु तुम्हारे पास सेना नहीं है, मोगल पठान दोनों सेना बल में तुमसे श्रेष्ठ हैं बिना एक की सहायता दूसरे पर जय पाना सहज नहीं है, तुम हमारी बातों से अप्रसन्न न होना सोचो और मनमें विचारों और एक बात यह है कि दोनों से शत्रुता करही के क्या करोगे? पहिले तो शत्रुता अच्छी नहीं और यदि ऐसाही आनपड़े तो दो शत्रु से एक अच्छा है। हमारी बातों को भलीभांति विचार करके देखो।

बीरेंद्रसिंह कुछ काल पर्य्यन्त चुप रहे फिर बोले कि आप किधर की संधि चाहते हैं?

स्वामीजी ने कहा 'यतोधर्म्मस्ततोजय:' जिधर जाने में अधर्म्म न हो वही पक्ष लेना चाहिये, राज का द्रोही होना महां पाप है अतएव राजपक्ष प्रहण करो।

बीरेन्द्र ने थोड़ा सोचकर कहा कि राजा कौन है? मोगल पठान दोनों में राजत्व का विवाद है?

अभिराम स्वामी ने उत्तर दिया 'जो कर ले वही राजा'

बी० | अकबरशाह?

अ० | और क्या?