विमला ने कुछ उत्तर न दिया और फिर पूछा कि 'मुझ को क्या आज्ञा होती है?,
बीरेन्द्र ने पूछा तिलोत्तमा कैसी है? अभी कुछ क्लेश सुनने में आया था, अबतो अच्छी है न?
वि०| आप की कृपा से अच्छी है।
बी०| अच्छा थोड़ी देर मुझको पंखा तो झल, आसमानी तू जा तिलोत्तमाको बुला ला और वह पंखा रखकर चली गई।
बिमला ने "इशारे से" आसमानी को द्वार पर ठहरने को कहा।
बीरेन्द्र ने दूसरे दासी से कहा "लक्षिमिन? तू मेरे लिये पान तो लगा ला" और वह भी चली गई।
बी०| बिमला सच बता आज तूने श्रृंगार क्यों किया है।
बि०| कुछ काम है।
बी०| क्या काम है बता न?
बि०| अच्छा सुनिए, और कामोद्दीपक कटाक्ष से वीरेन्द्र की ओर देखने लगी और बोली "मैं अपने यार के पास जाती हूं" और तुरन्त वहां से चल खड़ी हुई.
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बिमला के संकेत के अनुसार आसमानी द्वार पर खड़ी थी। बिमला ने आकर उस्से कहा आज तुझ से एक बात कहनी है।