सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[४९]


फिर बिमला कहने लगी कि मैं उस दिन शैलेश्वर के दर्शन से लौटी आती थी मार्ग में उस बट के नीचे एक बढ़ी भारी मूर्ति देख पड़ी थी, इतने में जो दिग्गज की ओर दृष्टि पड़ी तो उसने देखा कि ब्राह्मण मारे डर के कांप रहा है, विशेष वार्ता से उसको शक्ति हीन होने के भय से बिमला ने बात टाल दी और कहने लगी "रसिकदास तुम गाना जानते हो?"

दिग्गज ने कहा, हां जानता क्यों नहीं।

तब बिमला ने कहा, अच्छा गाओ तो सही।

दिग्गज ने आरम्भ किया।

ए-हुम ऊं–"सखी री श्याम कदम्ब की डाल।"

मार्ग में एक गाय पड़ी खर्राटा ले रही थी इस अलोकिक राग को सुनकर भागी। रसिक गाने लगे।

"मोर पच्छ सिर सुमग बिराजै कर मुर्ली उर माल।

हँसि हँसि बात करत यदुनन्दन गिरवरधर गोपाल ॥१॥

ठाढ़ डगर अति रगर करत है रोकत सब बृज बाल।

गगरी फोरि नित चुनरी बिगारत करत अनेक कुचाल ॥२॥

इतने में मधुर संगीत ध्वनि सुनकर दिग्गज का राग बन्द होगया, बिमला गाने लगी उस सूनसान मैदान में रात्रि के समय जो उस कोकिल कण्ठी ने टीप ली शीतल समीर ने झट पट उसको इन्द्र के अखाड़े तक पहुंचा दिया और अप्सरा सब कान लगा कर सुनने लगीं दिग्गज का भी कान वहीं था जब वह गा चुकी रसिकदास ने कहा और-

बि०| और क्या?

दि०| एक और गाओ।

बि०| अब क्या गाऊं।