इतने में चन्द्रमा का उदय हुआ, बिमला और घबराई—
किञ्चित काल के अनन्तर दिग्गजने "पूछा प्यारी बोलती क्यों नहीं?"
बिमला ने कहा मार्ग में कुछ चिन्ह देखते हैं।
दिग्गज ने भली भांति इधर उधर देख कर कहा बहुत से घोड़ों के पैर के चिन्ह देख पड़ते हैं!
बि०| वाह कुछ समझे भी?
दि०| समझे तो कुछ नहीं।
बि०| वहां एक मरा हुआ घोड़ा, यहां सिपाही की पगड़ी और पृथ्वी तल में घोड़ों के पदचिन्ह इतने पर भी तुम्हारे कुछ समझ में नहीं आया! कोई मरा अवश्य है।
दि०| क्या?
बि०| अभी इधर से कोई सेना गई है।
गजपति ने डर के कहा तो धीरे २ चलो जिसमें वे सब आगे बढ़ जांय।
बिमला हंसकर कहने लगी कि तुम बड़े मूर्ख हो। क्या वे आगे गए हैं? देखो तो घोड़ों की टाप का मुंह किधर हैं? यह सेना मान्दारणगढ़ को गई है।
थोड़ी देर में शैलेश्वर के मन्दिर की ध्वजा देख पड़ी। बिमला ने मन में कहा कि राजपूत और ब्राह्मण से साक्षात होना अच्छा नहीं क्योंकि कुछ अनिष्ट हो तो आश्चर्य्य नहीं अतएव इसको यहां से हटाना उचित है।
दिग्गज ने फिर आकर बिमला के आंचल को पकड़ा।
बिमला ने पूछा अब क्या हुआ?
ब्राह्मण ने पूछा 'अब कितनी दूर और है?'