पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/५५

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बि०| क्या कितनी दूर है?

दि०| वही वट वृक्ष!

बि०| कौन वट वृक्ष?

दि०| जहां तुम लोगों ने उसे देखा था।

बि०| क्या देखा था!

दि०| अरे रात को उस का नाम लेना न चाहिये।

बिमला समझ गई और औसर पाय बोली "ईह"

ब्राह्मण और डर गया बोला "क्या है।"

विमला घबरा कर शैलेश्वर के मन्दिर के समीपवर्ती वट वृक्ष की ओर उँगली दिखा कर बोली "देखो वही वठ का पेड़ है।"

दिग्गज से आगे न बढ़ा गया और मारे डर के पत्ते की भांति कांपने लगा।

बिमला ने कहा "आओ।"

ब्राह्मण ने कांपते २ उत्तर दिया कि मैं आगे नहीं जा सक्ता—

बिमला ने कहा कि मैं भी डरती हूं।

इतना सुनतेही ब्राह्मण चट लौट खड़ा हुआ और भागने की इच्छा करने लगा।

बिमला ने वृक्ष की ओर देखा कि उसके नीचे कोइ बस्तु पड़ी है। मन में जाना कि महादेव का नन्दी है किन्तु गजपति से कहा! गजपति! ईश्वर का ध्यान करो। देखो वृक्ष के नीचे कुछ जान पड़ता है?

"अरे बापरे" कह कर दिग्गज चम्पत हुए और लंबे २ डगों से झट पट आध कोस निकल गये।

बिमला तो उस के स्वभाव को भली भांति जानती थी।