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पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/६४

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अच्छा तो जब तक मैं अपना अधिकार न बताऊं आप न चलेंगे?

राज०| निस्सन्देह न जाऊंगा।

विमला ने झुक कर राजपुत्र के कान में कुछ कहा।

राजपुत्र ने कहा "अच्छा चलो!"

बिमला राजकुमार को अमराई के भीतर से ले चली। किन्तु चलते समय फिर पत्तों के खड़खड़ाने से मनुष्य की आहट मालूम हुई।

बिमला ने कहा "देखो फिर"।

राज कुमार ने कहा "तुम तनिक और ठहरो मैं देख आऊं" और नंगी तलवार लेकर जिधर शब्द सुन पड़ा था उसी ओर चले पर कुछ देख न पड़ा। एक तो उस अमराई में झाड़ियों की बहुतायत तिस पर अन्धेरी रात दृष्टि भी दूर तक नहीं जाती थी और राजपुत्र ने यह भी समझा कि कौन जानि कोई पशु के चलने से पत्ता खड़का हो, किन्तु सन्देह निवाणार्थ एक वृक्ष के उपर चढ़ गए और चारो ओर देखने लगे तो एक वृक्ष के कुञ्ज में दो मनुष्य बैठे देख पड़े। केवल झलक भर देख पड़ती थी। भली भांति उस वृक्ष को चिन्ह धीरे २ नीचे आए और सब समाचार बिमला से कह सुनाया और बोले-यदि इस समय दो बर्छा होता तो अच्छा था।

बिमला ने पूछा बर्छा क्या होगा!

रा०| तो जान लेता कि यह मनुष्य कौन हैं? लक्षण अच्छा नही दीखता। मैं जानता हूं कि कोई पठान दुष्ट इच्छा करके हमारे पीछे आता है! बिमला ने भी उस घोड़े और पगड़ी का समाचार उनसे कहा और बोली की आप