सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[७२]


आकर घेर लेंगे।

प्रहरी चुप रह गया।

बि०| यह बात दुर्ग के सब लोग जानते हैं।

प्रहरी ने प्रसन्न होकर कहा सुनो, आज तुमने, बड़ा काम किया, मैं अभी जाकर सेनापति से यह बात कहता हूं, ऐसे समाचार देने से पुरस्कार मिलता है। तुम यहीं बैठी रहो मैं अभी आता हूं।

बिमला ने कहा आओगे तो!

शे०| आऊंगा क्यों नहीं, अभी आया।

बि०| देखो हमको भूल न जाना।

शे०| नहीं, नहीं।

बि०| देखो हमी को खाओ।

कुछ चिन्ता नहीं, कहता हुआ प्रहरी दौड़ा।

उसको आंख से ओट होतेही बिमला भी वहां से भगी।।





अठारहवां परिच्छेद।
प्रकोष्टाभ्यन्तर।

पहिले बिमला के मनमें आई कि चलकर इसका सम्वाद बीरेन्द्रसिंह को देना चाहिए और उसी ओर दौड़ी, आधी दूर नहीं गई थी कि पठानों का अल्ला २ उसके कान में पड़ा

क्या! पठानों ने जय पा ली? बिमला बहुत व्याकुल हुई, थोड़ी देर में बड़ा कोलाहल हुआ और जान पड़ा कि दुर्ग में सब सजग होगए। घबराई हुई बीरेन्द्रसिंह की कोठरी में जाकर देखा तो वहां भी बड़ा कोलाहल मचरहा है, झांक