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पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/७६

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कर देखा कि बीरेन्द्रसिंह कमर बाँधे हाथ में नंगी तलवार लिए रूधिराव शिक्त उन्मत्त की भांति अति घूणित फिरते है, किन्तु निष्फल, एक पठान ने ऐसे ज़ोर से तरवार मारी कि हाथ की कृपाण भूमि में गिर पड़ी और बीरेन्द्रसिंह पकड़े गए।

बिमला देख भाल, भग्नाशा हो वहां से चली। उस समय तिलोत्तमा स्मरण हुई और उसके यहां दौड़ी, पर मार्ग में देखा कि तिलोत्तमा के यहां जाना बड़ा कठिन है। छत पर, सीढ़ी पर, कोठरी दर कोठरी जहां देखा वहीं पठान सेना। दुर्ग जय हो जाने की शंका फिर मनमें न रही।

जब बिमला ने देखा कि तिलोत्तमा के यहां जाने में धोखा है तो वहां से लौटी और मनमें सोचती जाती थी कि अब जगतसिंह और तिलोत्तमा को इसका समाचार कैसे पहुंचाऊं! खड़ी २ एक कोठरी में इसी प्रकार सोच रही थी कि पठान लूटते २ इसी कोठरी के निकट आ पहुंचे वह मारे डरके एक सन्दूक के पीछे छिप रही। सिपाहियों ने आकर उस कोठरी में भी लूट मचा दी। बिमला ने देखा कि यहां भी बचाव नहीं हो सकता क्योंकि लुटेरे जब आकर इस सन्दूक को खोलेंगे तब, मैं पकड़ जाऊंगी। कुछ काल तो जान पर खेल वहीं पड़ी रही और सिर उठा कर देखा कि लुटेरे क्या करते हैं। उनको अपने काम में दशो चित्त से लिप्त देख धीरे २ वहां से निकल कर भागी, किसी ने देख नहीं पाया किन्तु द्वार से बाहर निकलतेही एक सैनिक ने पीछे से आकर उसका हाथ पकड़ लिया। पीछे से फिरकर जो उसने देखा तो रहीम शेख़ ने कहा 'क्यों' अब कहां भाग कर जायगी।