देहली को घेर रक्खा; परन्तु अँगरेज़ी सेना को वह वहांसे न निकाल सका। उस समय से लेकर १८५७ इसवी तक इस देश की प्राचीन राजधानी देहली अँगरेज़ों ही के अधीन रही। औरङ्गजेब के वंशज उस समय तक नाममात्र के लिए बादशाह थे। १८५७ ईसवी में, जिस समय सिपाहियों ने विद्रोह मचाया, देहली में बहादुरशाह नाममात्रको बादशाही चला रहे थे। उस समय उनकी अवस्था ८० वर्ष के लगभग थी। विद्रोहियों का साथ देने के कारण अँगरेज़ों ने उन्हें रंगून भेज दिया। तब से देहली का राज्यासन सदा के लिए सूना हो गया। विद्रोह के अनन्तर देहली पञ्जाब में मिला दी गई और वह एक साधारण नगर रह गई। उस का राजकीय ठाठ लोप हो गया। यह लिखने का स्थान इस छोटे से लेख में नहीं है कि विद्रोह के समय देहली में कौन कौन घटनायें हुईं और किस किस कारण से उसे क्या क्या हानियां उठानी पड़ीं।
देहली में अनेक स्थान देखने योग्य हैं। उन में से ये मुख्य हैं—
१ क़िला | ५ समन बुर्ज और रङ्गमहल |
२ मक्क़ारख़ाना | ६ मोती-मसजिद |
३ दीवाने-आम | ७ जुमामसजिद |
४ दीवाने-ख़ास | ८ चान्दनीचौक |
देहली का क़िला लाल पत्थर का है। वह यमुना के किनारे है। कहीं कहीं उस में सङ्गमरमर भी लगा हुआ है। क़िले में जाने के लिए कई फाटक हैं; उन में से लाहौरी दरवाज़ा, जो चाँदनीचौक के सामने है, बहुत प्रसिद्ध है। लाहौरी दरवाज़े और क़िले के बीच में