पृष्ठ:दृश्य-दर्शन.djvu/१२

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देहली


अनेक अच्छी अच्छी इमारतें थीं। उन इमारतों में, बादशाही समय में, बाज़ार लगते थे और शाही कर्म्मचारी रहा करते थे। विद्रोह के समय वे सब गिरा दी गईं; परन्तु अभी जो कुछ शेष है उससे उनके वैभव का बहुत कुछ अनुमान किया जा सकता है। लाहौरी दरवाज़े से निकलकर, पूर्व की ओर थोड़ी दूर जाने पर, नक्कारख़ाना मिलता है। बड़े बड़े अमीर और अधिकारी, बादशाही समय में, वहां तक अपने अपने हाथियों पर चढ़े हुए चले आते थे। वहां पर वे उतर पड़ते थे और शाही दरबार को पैदल जाते थे।

क़िले के भीतर प्रवेश करने पर दीवाने-आम, दीवाने ख़ास और मोती-मसजिद पर दृष्टि पड़ती है। दीवाने-आम बादशाही दरबार का स्थान है। वहां प्रायः सब को प्रवेश मिलता था। वह तीन ओर से खुला है। पीछे दीवार में एक ज़ीना है जो सिंहासन के स्थान तक चला गया है। वह स्थान पृथ्वी से १० फुट ऊंचा है। उसपर संगमरमर के चार खम्भों पर एक छत्र है। उस का काम बहुत ही अच्छा है। सिंहासन के पीछे एक दरवाज़ा है, जिस से बादशाह दरबार में आते थे। पीछे की दीवार बहुमूल्य पत्थरों से पच्ची की हुई है। वहां नाना प्रकार के सुन्दर सुन्दर फल, फूल और पशु-पक्षियों के चित्र चित्रित हैं। वह काम आस्टिन डी बोरडक्स नामक फरासीसी कारीगर ने, शाहजहाँ के समय में, किया था।

दिवाने-आम से कोई १०० गज़ पूर्व की ओर, आगे, दीवाने-ख़ास है। वह बादशाह के बैठने की जगह थी। वहां मुख्य मुख्य अमीर-उमरा और अधिकारियों के सिवा और कोई नहीं जाने पाता था।