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दृश्य-दर्शन

जिस हालवेल ने इस तरह का मिथ्यावाद किया वही यदि काल कोठरी की कहानी गढ़ कर कलत्ते के अँगरेज़-सौदागरों के विषय में विलायत वालों की सहानुभूति जाग्रत करने की कोशिश करे तो क्या आश्चर्य ?

सिराजुद्दौला बड़ा स्त्रैण था। उसने एक लाख रुपये देकर देहली से फैज़ी नामक एक बार वनिता मँगाई थी। वह सिर्फ २२ सेर वजन में थी। सुन्दरता में वह दूसरी उर्वशी थी। पीछे से सिराजु- द्दौला उससे नाराज हो गया और उसे उसने ज़िन्दा ही दीवार में चुनवा दिया। मोहनलाल नामक एक आदमी की बहन अत्यन्त सुन्दरी थी। उसका देहभार ३२ सेर था। वह भो सिराजुद्दौला की अङ्क-गामिनी हुई । इस उपलक्ष्य में मोहनलाल को मन्त्री का पद मिला । सिराजुदौला के बाद उसके महलों में कई सौ स्त्रियां निकली! रानी भवानी की विधवा लड़की तारा को जब उसने बुरी नज़र से देखा तब बङ्गाल के ज़मींदार उससे बेतरह नाराज़ हो उठे। तब तक सिराजुद्दौला केवल युवराज ही था। जब वह मुरशिदाबाद का मालिक हुआ और जगत सेठ को दरबार में उसने चपत मारी तब जगत सेठ के यहां मन्त्रणा करके लोगों ने उसे विश्वासघात-पूर्वक राज्यच्युत करने की ठानी। सिराज ने अपनी मौसी घसीटी बेगम को निकाल दिया;उसका माल असवाब जब्त कर लिया;और मीरजाफ़र को सिपहसालरी के ओहदे से दूर कर दिया। इन्हीं कारणों से लोग और भी उसके खिलाफ़ हो गये। यही सब बातें सिराजुद्दौला के नाश का कारण हुई।

अँगरेज़ों ने बिना सिराज के हुक्म के कलकत्ते में किला बना लिया और जो अँगरेज़ ईस्ट इण्डिया कम्पनी की तरफ से व्यापार न करते