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दृश्य-दर्शन

बडाली और अरमनी लोगों को ७० लाख, और अमीचन्द को ३० लाख रुपया पाने की व्यवस्था हुई। अमीचन्द को रुपया देना अँग- रेज़ों को मंजूर न था और देने का वादा न करने से डर था कि वह उनकी गुप्त मन्त्रण नव्वाब पर जाहिर कर देगा। इसलिए क्लाइव ने दो दस्तावेजें लिखीं। एक सफेद कागज पर, दूसरी लाल काग्रज पर। लाल कागज वाली जाली थी। असली में अमीचन्द को रुपये देने की शर्त न थी।

पलासी में अँगरेजों का सामना सिराजुद्दौला ने किया। उसके सेनापतियों में से मीरमदन और मोहनलाल को छोड़ कर किसी ने भी ईमानदारी से युद्ध न किया। मीर मदन ने बड़ी बहादुरी दिखलाई । पर वह मारा गया। अकेले मोहनलाल ही क्लाइव का पराभव कर देता,पर विश्वासघात-पूर्वक लड़ाई बन्द कराकर मीर जाफ़र फौज को शिविर में ले आया। इतने में अँगरेज़ी फौज़ ने धावा करके सिराजुदौला को वची वचाई खरख्वाह फौज को तितर बितर कर दिया। सिराज लाचार होकर मुरशिदाबाद आया और वहां से राजमहल की तरफ़ भागा। पर मीर जाफ़र के आदमी उसे रास्ते से पकड़ लाये । अन्त में बड़ी बेइज्ज़तो के साथ मीरजाफ़र के बेटे मीरन ने उसे मरवा डाला। उसके कुछ ही दिनों बाद मीरन पर बिजली गिरी और उसीसे उसकी मौत हुई। क्लाइव ने मीरजाफ़र को मुरशिदाबाद की मसनद पर बिठाया और यथेष्ट पुरस्कार भी पाया; पर आखिर को आत्महत्या करके उसे इस संसार को छोड़ जाना पड़ा।

मीरजाफ़र ने क्लाइव को मालामाल कर दिया और अँगरेज़ वणिकों