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मुरशिदाबाद

की हर तरह मदद की। कलकत्ते में टकसाल तक जारी करने की उसने आज्ञा दे दी। पर क्लाइव के विलायत चले जाने पर काल- कोठरी वाले हालवेल साहब उससे नाराज हो गये । इसका रण आपने मीरजाफ़र को पदच्युत करके उसके दामाद मीरक़ासिम को मुरशिदाबाद की गद्दी इनायत फरमाई। मीरकासिम ने कलकत्ते के गवर्नर और कौसिल के मेम्बरों को गद्दी पाने पर २० लाख रुपया देने का वादा किया था। पर इस वादे को उसने पूरा न किया। इसके सिवा और भी कई तरह से उसने अँगरेज़ों को नाराज़ कर दिया। अँगरेज़ों ने लड़ाई में उसे परास्त किया और मीरजाफर को दुवारा मुरशिड़ाबाद की मसनद पर बिठलाया । इस हादसे के दो वर्ष वाद मीरजाफर की मौत हुई।

मीरजाफर का लड़का नजमुदौला गद्दी पर बैठा। पर गद्दी की प्राप्ति के उपलक्ष्य में उसे २१,००,००० रुपया कलकत्ते के अंगरेज़ी कौलिल के मेम्बरों को देना पड़ा ! नजमुदौला के वक्त में क्लाइव फिर कलकत्ते पधारे और देहली के नाम धारी बादशाह से कम्पनी बहादुर के लिए बङ्गाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी की सनद आपने हासिल की। इसके बाद आपने मुल्क का प्रवन्ध अपने हाथ में लिया और नजमुहौला के लिए ५३ लख रुपये सालाना वसीका मुकर्रर कर दिया। इस पर नजमुद्दौला ने बड़ी खुशी जाहिर की। उसने कहा-“अब मैं जितनी नर्तकियां चाहूंगा रख सकंगा” तब से मुरशिदाबाद की नब्वावो में घुन लग गया और नवाब की सारी शक्ति; धीरे धीरे, हास होते होते कम्पनी के हाथ में चली गई।