रूप,रंग,बड़ाई और इतिहास के कारण प्रसिद्ध हैं। अनेक रत्न ऐसे हैं जो देहली के बादशाहों के पास रहे हैं । इस तोशेखाने में कुछ बहुमूल्य हथियार भी हैं;उन पर तरह तरह के रत्न जड़े हुए हैं। यहां एक तलबार है जिस पर जड़े हुए सिफ़ रत्नों की कीमत कोई ३०,००० रुपये हैं। एक हीरों से जड़ा हुआ सरपेंच है। कलकत्ते की हैमिल्टन कम्पनी ने इसके एक ही हीरे की कीमत बेशुमार वतलाई है। लोग कहते हैं कि यह सरपेंच अकबर का है। एक हार बहुत मनोहर और बहुमूल्य है। उसमें बेशकीमती मोती, लाल,नीलम और हीरे हैं। एक लाल के ऊपर खुदा हुआ है—“जहाँगीरशाह इब्न अकबरशाह,१०१८ हि०।" इसी हार को नादिरशाह के डर से देहली के बादशाह महम्मदशाह ने मुरशिदाबाद भेज दिया था।
मुरशिदाबाद के इस महल में बहुत पुराने पुराने कागजात अभी तक रक्खे हैं। उनमें से कितनी ही सनदें, दस्तावेजें, फरमान और सन्धिपत्र हैं। कुछ कागज़ कलकत्ते के नये विकोरिया भवन में रखने के लिए चले गये हैं। वारेन हेस्टिंग्ज,मेक्फरसन,लार्ड कार्न- वालिस और सर जान शोर के हाथ से लिखे हुए कई पत्र अब तक अच्छी तरह सुरक्षित हैं । अँगरेज़ों और नव्वाव नाज़िमों के दरमियान जो सन्धिपत्र लिखे गये थे वे भी अब तक विद्यमान हैं। उनकी तफ़सील इस प्रकार है-
(१) १७६३ ईसवी का सन्धिपत्र,मीरजाफर और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के दरमियान । इसी के अनुसार मीरक़ासिम को पदच्युत करके मीरजाफर को दुबारा मुरशिदाबाद की मसनद मिली और मीर जाफर