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दृश्य-दर्शन

ने अँगरेज़ों को वर्दमान,मेदनीपुर और चटगाँव के चकले दिये।

(२) ईस्ट इण्डिया कम्पनी और नजमुद्दौला के दरमियान,१७६५ ईसवी की सन्धि। इसके मुताबिक कम्पनी ने नव्वाब की मदद करने का भार अपने ऊपर लिया।

(३) १७६५ ईसवी का इकरारनामा । जनमुद्दौला और कम्पनी के दरमियान । इसके अनुसार नव्वाब ने ५४ लाख सालाना वसीका मंजूर किया।

(४) सैफुद्दौला और कम्पनी के दरमियान,१७६६ ईसवी की, सन्धि । अँगरेजों ने नव्वाब की रक्षा का भार अपने ऊपर लिया। नव्वाब ने सिर्फ ४२ लाख रुपया सालाना अपने खर्च के लिए लेना मंजूर किया।

(५) १७७० ईसवी का सन्धि-पत्र । कम्पनी बहादुर और नव्वाब मुबारफुद्दौला के दरमियान । नव्वाब का सिर्फ ३२ लाख रुपया साल वसीक़ा कुबूल करना।

ये सब सन्धिपत्र कलकत्ते पहुंच गये हैं। इनपर क्लाइव,ड्रक, वाटसन,वारन हेस्टिंग्ज इत्यादि के असली दस्तखत हैं। इङ्गलैण्ड के राजा चौथे विलियम का लिखा हुआ,नव्वाब मुबारकुद्दौला के नाम, एक पत्र भी यहां यथावत् रक्खा हुआ है। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने मीरजाफर को घड़ी,मेज़,सन्दूक,आईने इत्यादि बहुत सी अच्छी अच्छी और कीमती चीजें जो नजर में दी थीं वे भी यहां बड़े यत्न से रक्षित हैं। ये सब ऐतिहासिक चीजें अवलोकनीय हैं।

मुरशिदाबाद का इमामवाड़ा एक मशहूर इमारत है। उसके बनाने