में ६ लाख रुपये खर्च हुए थे। सिर्फ ११ महीने में वह बना था। मेसनों और मजदूरों को खाना, कपड़ा भी मिलता था। वे दिन-रात काम करते थे । इमारत खतम होने पर उनको दुशाले और रूमाल इनाम मिले थे। उस वक्त सारा मुरशिदाबाद दुशाला मय हो गया था। इस इमामबाड़े की लम्बाई ६८० फुट है। लखनऊ के इमामबाड़े से उतर कर हिन्दुस्तान में इसी का नम्बर है। इसमें जो लेख है उसमें लिखा है कि “यह दूसरा करबला है।" इसके खम्भे बहुत ही खूब सूरत और ऊँचे हैं;इसका फर्श सङ्गमरमर का हैं; इसके मण्डप के भीतरी हिस्से में सोने और चांदी का काम है। मुहर्रम के वक्त दस बारह रात तक इसमें खूब रोशनी होती है। उस समय इसकी शोभा अपार हो जाती है।
चौक-मसजिद,इस समय,मुरशिदाबाद में सब से बड़ी मसजिद है। १७६७ ईसवी में उसे मीरजाफ़र की बीबी,मनीबेगम,ने बनवाया था। यह मसजिद बहुत खूबसूरत है और अच्छी हालत में है ।
मुरशिदाबाद से थोड़ी दूर पर वह जगह है जहां नव्वाव नाजिम का तोपखाना था। वहां पर अब सिर्फ एक तोप रह गई है। वह बहुत बड़ी है। उसका नाम है “जहां कुशा”। वह एक गाड़ी पर चढ़ी हुई थी। पर इस समय गाड़ी के पहिये तक गायब हो गये हैं। पर उसका कुछ हिस्सा,जो बहुत मजबूत लोहे का था,अब तक उसके नीचे देख पड़ता है। तोप की बगल में पीपल का एक पेड़ उग आया है। उसने तोप को अपनी गोद में रख कर उसे जमीन से ४ फुट