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दृश्य-दर्शन


वहीं राज्य के कार्यों की गूढ़ बातें अपने मन्त्रियों के साथ बैठकर बादशाह करते थे। वह संगमरमर का बना हुआ है। उस में सुनहरा काम है। उसकी छत चांदी के पत्रों से मढ़ी हुई थी, जिसे १७६० ईसवी में मराठे निकाल ले गये। मध्य में, पूर्व की ओर, सङ्गमरमर का एक चबूतरा है, जिसपर प्रसिद्ध मयूर-सिंहासन (तख्ते-ताऊस) रक्खा रहता था। उसे १७३९ ईसवी में नादिरशाह फारस को उठा ले गया। वहां वह अब तक, तेहरान में, विद्यमान है।

समनवुर्ज और रंगमहल, दीवाने-ख़ास के दक्षिण ओर हैं। वह बादशाह का अन्तःपुर था। उसमें जो काम किया हुआ है उसका वर्णन नहीं हो सकता। उसे देख सुन्दरता और शोभा स्वयं लज्जित होती है। पहले इन इमारतों के चारों ओर वाटिका थी और स्थान स्थान पर फौवारे लगे थे। उस समय इनकी जो शोभा और समृद्धि थी उसका शतांश भी नहीं रह गया है। तथापि जो कुछ बचा है उसको देखकर यह अनुमान किया जा सकता है कि उस समय इनकी समता करने योग्य दूसरी इमारत शायद कहीं भी न रही होगी। अब यहां अँगरेजी सेना का निवास है।

मोती मसजिद भी वहीं पास है। उसे १६३५ में औरंगजेब ने बनवाया था और उस के बनाने में १,६०,००० रुपये खर्च हुए थे। वह भी सङ्गमरमर की है। उसकी भी शोभा और सुन्दरता देखने ही योग्य है।

जुमा-मसजिद को यदि संसार भर की मसजिदों से अच्छी कहें तो कोई अत्युक्ति न होगी। वह २०१ फुट लम्बी और १२० फुट चौड़ी