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दृश्य-दर्शन

बड़ा नाम पाया है। १८८२ में दार्जिलिंग से रवाना हो कर वे लासा तक चले गये ; लासा में वे कई महीने तक रहे भी। उन्होंने तिबतपर जो पुस्तक लिखी है उसका सब कहीं बड़ा आदर है। इस उपलक्ष्य में गवर्नमेंट ने उनको राय बहादुर की पदवी देकर अपनी प्रसन्नता प्रकट की। बौद्धशङ्कराचार्या दलाय लामा के विषय में दास वाबू,अपनी किताब में एक जगह लिखते हैं-

“हम को दलाय लामा के दर्शन हुए। उनकी उम्र, इस समय, आठ वर्ष की है। हमने देखा कि वे एक उच्च और सुसज्जित सिंहासन पर बैठे हैं। उनके दर्शनों के लिए दर्शक और पूजक लोग बड़ी भाव-भक्ति से एक एक करके भीतर जाते थे। वहाँ पर लामा के चरणस्पर्श करने पर लामा के अधिकारी उनको आशिर्वाद देते थे। जब हम लामा के पास से वापस आकर अपनी जगह पर बैठे तब हम को लामा का प्रसाद रूप थोड़ा सा चाय मिला। उसे हमने पी लिया ; परन्तु उनके नैवेद्य में से जो भात हम को दिया गया, वह हम ने नहीं खाया ; उसे हमने अपने पास रख लिया। इसके बाद लामा के प्रधान पुरोहित ने कुछ मन्त्र पाठ कर के लामा के चरणों पर अपना मस्तक रक्खा। जब यह हो चुका तब उसने सब को आशीर्वचन कह कर सभा बर्खास्त की"।

कवागुची केकय नामक एक जापानी भिक्षु तिबत में बहुत दिन तक रहा है। उसने भी अपने प्रवास का वर्णन प्रकाशित किया है। तिबत में जगह जगह पर मठ है। “ओं मणि पद्म हूं" तिबतियों का प्रधान मन्त्र है ! लम्बे लम्बे कागजों पर मन्त्र लिख कर वे कागज़