ये जितने मन्दिर हैं सब को सुसलमानों ने थोड़ा बहुत छिन्न-भिन्न कर डाला है;परन्तु अब तक उनकी पूजा-आर्चा कभी कभी होती है और दूर-दूर से लोग उनको देखने आते हैं। ग्वालियर और चतुर्भुज के मन्दिरों का नाम ऊपर आ चुका है। जयन्तो-थोरा में “थोरा” शब्द का क्या अर्थ है । समझ में नहीं आता। १२३२ ईसवी में अल्तमश ने उसको गिराकर नाम-शेष कर दिया। पर उसकी जगह अब तक मालूम है;वहां पर पन्द्रहवीं सदी के कुछ शिलालेख भी हैं।
तेली का मन्दिर एक प्रसिद्ध मन्दिर है। वह ग्यारहवीं शताब्दी का बना हुआ है। १८८१ में उसकी मरम्मत हुई है। लोगों को विश्वास है कि वह किसी तेली का बनवाया हुआ है। वह ६० वर्गफुट में बना हुआ है । ग्वालियर में इससे ऊंची इमारत और कोई नहीं। इसका द्वार ३५ फुट ऊँचा है;इसके ऊपर, बीच में, गरुड़ की एक बहुत अच्छी मूर्ति है । आदिमें वह विष्णु का मन्दिर था ; परन्तु पन्द्रहवीं शताब्दी से वह शिवालय हो गया है। यह सारी इमारत सैकड़ों प्रकार की मूर्तियों से भरी पड़ी है। इसकी मूर्तियां इत्यादि जो तोड़-फोड़ डाली गई थीं ; या जो गिर पड़ी थी, ढंढ़ ढंढ़ कर मन्दिर के पास रख दी गई हैं।