सास-बहू के नाम के दो मन्दिर हैं-एक बड़ा, दूसरा छोटा। लोगों का खयाल है कि किसी “सास-बहू ने उनको बनाया था। कोई कोई इन मन्दिरों का नाम “सहस्र बाहु” बतलाते हैं। परन्तु ये दोनों नाम निर्मूल जान पड़ते हैं। क्योंकि बड़े मन्दिर के भीतर बरामदे में एक बहुत लम्बा शिलालेख खुदा हुआ है। उसमें इसका नाम “पद्मनाथ” लिखा है । यह शिलालेख सम्बत् ११५० अर्थात् सन् १०९३ ईसवी का है। यह मन्दिर महीपाल नामक कछवाहा (कच्छ- पारि) राजा का बनवाया हुआ है। बड़ा मन्दिर १०० फुट लम्बा और ६३ फुट चौड़ा है। उँचाई उसकी इस समय सिर्फ ७० फुट है। परन्तु जनरल कनिहाम अनुमान करते हैं कि किसी समय वह १०० फुट ऊँचा था। इस मन्दिर में पत्थर का काम बहुत ही अच्छा है। इसके बीच का कमरा ३१ वर्गफुट है । इसकी छत बहुत बड़ी और भारी है। उसका बोझ थांभने में सहायता देने के लिए चार बड़े बड़े खम्मे हैं। छत को देखकर आश्चर्य होता है। उसकी बनावट को देखकर उसके बनाने वाले कारीगरों की सहस्र मुख से प्रशंसा करने को जी चाहता है। छोटा मन्दिर चारों तरफ़ से खुला हुआ है। उसमें १२ खम्भे हैं । खम्भे सब गोल हैं। उसमें,और बड़े मन्दिर में भी,नर्तकी स्त्रियों की बहुत सी मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। उनमें बड़ी कारीगरी दिखलाई गई है।
सास-बहू के बड़े मन्दिर में जो शिलालेख है उसके विषय में हमको कुछ कहना है । यह लेख पहले पहल हमने डाकर राजेन्द्र लाल की "इण्डोआर्यन्स' नामक पुस्तक में देखा। परन्तु वहां पर यह बहुत