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ग्वालियर

की त्रुटित दशा में था। इससे इसकी तरफ हमारा ध्यान अच्छी तरह नहीं मायान पर "इण्डियन ऐण्टिक्केरी” में जब हमने कोलहान साहब के द्वारा सम्पादित किया हुआ यह लेख देखा तब हम इसकी सुन्दरता और रचना-वैचित्र्य पर मोहित हो गये। इस लिए इसकी मूललिपि देखने के लिए हमारे चित्त में प्रवल इच्छा जागृत हो उठी। इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए हम शीघ्र ही झांसी से ग्यालियर गये। वहां हमने इस प्रशस्तिरूप लेखको प्रत्यक्ष देखा और किले में जितनी इमारते देखने लायक थीं उनको भी देखा ।

गोपगिरि (ग्वालियर ) में पद्माल नामक एक राजा था। उसने "मेरु-पर्वत के समान” एक बहुत ऊँचा विष्णु-मन्दिर बनवाना आरम्भ किया। वह बन न चुका था कि राजा मर गया। उसके पीछे उसके भाई सूर्यपाल का पुत्र महीपाल राजा हुआ। उसने सिंहासन पर बैठते ही दो काम किये । एक तो उसने इस मन्दिर को पूरा किया;दूसरे राज्यकन्या के लिए एक अच्छा वर ढूंढ़ कर उसका विवाह कर दिया। इस विषय का शिलालेख सुनिए-

तच्च द्वयं कृतमनेन विवेकभाजा
 
राजात्मजा मदनपालवराय दत्ता।
श्री पद्मनाथ सुरमन्दिरमेतदुच्चै-
 
नीतं समाप्तिमविनाशि यशःशरीरम् ॥

कनिंहाम साहब ने उसकी ऊँचाई जो १०० फुट अनुमान की है सो ठीक मालूम होती है। इस शिलालेख में, इस मन्दिर की उँचाई के विषय में इस तरह लिखा है-