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ग्वालियर

करने वाले हे स्वामिन् आप लक्ष्मी के घर हैं,(राजों के यहां लक्ष्मी की कमी नहीं); मित्रों से आपको आनन्द प्राप्त होता है;राजों में हंस के समान शोभायमान राज-वर्ग आपके चरणों की शोभा बढ़ाया करते हैं अर्थात् पैरों पर लोटा करते हैं; जड़ों को आपने नीचा दिखाया है ; शौर्य, औदार्य आदि गुणों से आप रमणीय हो रहे हैं। अतएव कृपा करके बतलाइए, आप कमल के कौन हैं ; क्योंकि कमल में भी यही सब बातें पाई जाती हैं। वह भी लक्ष्मी का घर है (कहते हैं कमल में लक्ष्मी रहती हैं); मित्र (सूर्य) के उदय से उसे भी प्रसन्नता होती है ; उसके भी पादमूल (जड़) की शोमा राजहंस पक्षी बढ़ाते हैं ; उसने भी जल (जड़-ल और ड़ का अमेह माना जाता है) को नीचे कर दिया है, अर्थात् वह सदैव जल के ऊपर रहता है ; उसमें भी गुणों (तन्तुओं) की रमणीयता रहती है।

ग्वालियर के किले में शेष जो चार मन्दिर हैं वे विशेष प्रसिद्ध नहीं । इसलिए उनके विषय में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं ।

यहां पर जैनों का भी एक मन्दिर है। वह ११०८ ईसवी के लगभग का बना हुआ है। वह हथियापौर और सास-बहू के मन्दिरों के बीच में है। किले की पूर्वी दीवार से सट कर वह बना हुआ है। उसे पहले बहुत कम लोग जानते थे। १८४४ ईसवी में जनरल कनिहाम ने उसका पता लगाया और उसकी प्रसिद्धि की।

किले की दीवार के ठीक नीचे पहाड़ी के भीतर, चट्टानों को काट कर जो मूर्तियां यहां पर बनी हैं वे उत्तरी भारतवर्ष में अद्वितीय हैं। वे अनेक हैं और बहुत बड़ी बड़ी हैं। पर्वत में गुफायें खोदी गई हैं