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दृश्य-दर्शन

उन्हीं के भीतर पत्थर काट काट कर ये मूर्तियां बनाई गई हैं। सब मिला कर २१ मूर्तियां है। कोई कोई मूर्ति ५० फुट से भी अधिक ऊँची है। ये मूर्तियां आदिनाथ, नेमिनाथ, महावीर और चन्द्रप्रभ आदि जैन तीर्थङ्करों की हैं और प्रायः पन्द्रहवीं शताब्दी की बनी हुई हैं। इनमें से बहुतेरी मूर्तियां बाबर के हुक्म से, १५२७ ईसवी में तोड़ डाली गई थीं। उस समय उनको बने हुए कोई ६० ही वर्ष हुए थे। इस विषय में बाबर ने अपनी दिनचर्या में एक जगह लिखा है-"जैनों ने इस पहाड़ी को काट कर मूर्तियां बनाई हैं। कोई मूर्ति छोटी है;पर कोई चालीस चालीस फुट ऊँची हैं। ये सब मूर्तियां नङ्गी हैं। उन पर कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं। यह स्थान बहुत रमणीय है परन्तु इसमें सबसे बड़ा दोष यह है कि यहां मूर्तियों की अधिकता है। मैंने हुक्म दिया था कि सब मूर्तियां बरबाद कर दी जायँ । पर वे बिलकुल तोड़ी नहीं गई; केवल छिन्न भिन्न कर डाली गई। अब मैंने सुना है कि टूटे हुए सिरों की जैनों ने मरम्मत कराकर उन्हें यथास्थान जुड़वा दिया है।” तोमर-वंशी राजों के समय के कई शिलालेख इन गुफाओं के भीतर हैं। ग्वालियर के किले में ये गुफ़ा-मन्दिर और मूर्तियां भी देखने की चीज़ हैं।

बादशाही कारागार किले के पश्चिम तरफ़ है। उसमें ९ कमरे हैं। इसलिए उसका नाम नौचौकी पड़ गया है। यहीं पर औरङ्गजेब ने अपने बेटे महम्मद और अपने भाई दारा और मुराद के बेटों को कैद किया था । [दिसम्बर १९०४