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दृश्य-दर्शन


और पुराने शिलालेखों के विषय में फूरर साहब की पुस्तक में भी बनारस की बहुत सी बातें हैं। एक महाराष्ट्र-महाशय ने, मराठी में, एक किताब लिखी है। उसमें भी बनारस का अच्छा वर्णन है। पर हिन्दी में बनारस-वर्णन पर एक भी पुस्तक हमारे देखने में नहीं आई। पुराणों में भी, कहीं कहीं, बनारस का हाल है।

प्राचीन बनारस।

बनारस बहुत पुराना शहर है। उसका संस्कृत नाम काशी या वाराणसी है। पुराने ज़माने में वहां काश नाम का एक राजा हो गया है। उसीके नामानुसार शायद काशी नाम पड़ा है। वरुणा और असी नामक नदियों के सङ्गम पर, या उनके बीच में, होने के कारण इसका दूसरा नाम वाराणसी हुआ। बनारस इसी वाराणसी का अपभ्रंश है। विष्णुपुराण, भागवत और हरिवंश आदि पुराणों में काशी का कई जगह वर्णन है। उनमें काशी के पुराने राजों का भी थोड़ा बहुत हाल है। काश, दिवोदास और अजातशत्रु आदि काशी के मशहूर राजों में से थे। किसी समय काशी के आस पास का देश पुण्ड्र या पुण्ड्रक कहलाता था और उसके राजा पौण्ड्रक। पुण्ड्र गन्ने को कहते हैं। पौंडा पुण्ड्र ही का अपभ्रंश है। पुराने ज़माने में "पुण्ड्रक-शर्करा" बहुत प्रसिद्ध थी। अब भी बनारस की चीनी मशहूर है।

विष्णुपुराण में लिखा है कि काशी को एक दफ़े विष्णु के सुदर्शन-चक्र ने जला कर ख़ाक कर दिया था।