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दृश्य-दर्शन

धमेख कहते हैं।जनरल कनिंगहम के मत में सारनाथ नाम सारंग- नाथ का अपभ्रंश है। सारंगनाथ का अर्थ “हिरनों का मालिक” अथवा बुद्ध भी हो सकता है और महादेव भी हो सकता है। कहते हैं, किसी समय, यहां पर मृगदाव नाम का जंगल था आर बुद्ध, अपने किसी पूर्व-जन्म में, हिरनों के राजा के रूप में, यहां घूमे फिरे थे। गया में वोधिसत्वता को प्राप्त होकर शाक्य मुनि ने इसी जगह, सब से पहले, बाद्ध मत प्रचलित करने का यत्न किया था।

चीन के बौद्ध परिव्राजक फाहियान (३९९ ईसवी में ) और हुएनसङ्ग ( ६२९-६४५ ईसवी में), दोनों ने, सारनाथ का वर्णन किया है। पिछला इसके विषय में इस प्रकार लिखता है—“बनारस के उत्तर-पश्चिम अशोक का एक स्तूप है। वह १०० फुट ऊँचा है। वहां एक बहुत बड़ा संघाराम है। वह आठ हिस्सों में बँटा हुआ हैं। उसके चारों तरफ़ दीवार है । उसके भीतर दो-मंज़िले कई महल हैं और एक विहार भी २०० फुट ऊँचा है। स्तूप के चारों तरफ छोटी-छोटी १०० कोठरियों की एक लाइन है। हर कोठरी में एक एक मूर्ति बुद्ध की है। मूर्तियां सुवर्ण-खचित हैं। विहार के पास अशोक का बनवाया हुआ एक स्तूप है। उसके सामने ७० फुट ऊंचा एक स्तम्भ है। जहां स्तम्भ है वहीं बुद्ध ने पहले पहल धर्मोपदेश किया था। यहां पर तीन तालाब हैं। मठ से थोड़ी दूर पर एक और स्तूप है। वह ३०० फुट ऊँचा है। उसमें अनेक रत्न लगे हुए हैं।

इस समय सारनाथ में दो स्तूपों के अवशिष्ट अंश हैं। एक धमेख (धर्मोपदेशक ?) जो पत्थर का है, दूसरा चौखण्डी, जो ईटों