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बनारस

का है। दोनों में कोई आध मोल का अन्तर है। बीच की जगह टीले के आकार में खाली पड़ी है। उसमें ईंट, रोड़े, पत्थर और पुरानी मूर्तियों के टुकड़े इधर उधर पड़े हुए हैं। उसके पूर्व,नरोकर या सारङ्गताल नाम का एक बहुत बड़ा तालाब है। धमेख से दक्षिण-पश्चिम की तरफ जैनियों ने पार्श्वनाथ का एक मन्दिर बनवा या है।

धमेख को जिस समय जनरल कनिंगहम ने नापा था उस समय वह ११० फुट ऊँचा था। उसका घेरा, नीचे, ९३ फुट था। ४३ फुट की उँचाई तक यह स्तूप पत्थर का है ; उसके ऊपर ईट का। स्तूप के चारों तरफ़ जो मूर्तियों के रखने की जगह हैं वे सब खाली हैं। उनमें पूरे कद की बुद्ध की मूर्तियां किसी समय रही होंगी। पत्थरों में फूल-पत्ती और मनुष्यों के चित्र कहीं कहीं पर, खुदे हुए अभी तक बने हैं।

१७९४ ईसवी में राजा चेतसिंह के दीवान जगतसिंह ने, धमेख से १४० गज़ के फासले पर, एक जगह खुदवाई । उसले जो ईट-पत्थर निकला, वह जगतगज बनाने के काम में आया। जो जगह खोदी गई वहां पर, ज़मीन के भीतर, एक दालान निकली। उसमें, खोदने पर, दो बक्स निकले। एक पत्थर का था, दूसरा सङ्गमरमर का। उनमें मनुष्य को कुछ हड्डियां और कुछ गले हुए मोती और सोने के वर्क वगैरह मिले। बुद्ध की एक मूर्ति भी निकली। उसपर १०८३ संवत् का एक लेख था। वह गौड़-नरेश महिपाल के समय का था।

चौखण्डी का दूसरा नाम लोरी को कुदान है। यह एक ऊँचा