पृष्ठ:दृश्य-दर्शन.djvu/६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६१
बनारस

अच्छी अच्छी पुस्तकें प्रकाशित करती है;हिन्दी में व्याख्यान दिलवाती है;और अन्य भी बहुत सी बातें करती है। इस सभा का एक उसूल-सिद्धान्त-बिलकुल ही नया है। वह यह कि,दूसरों के विषय में यह जो कुछ कहती है, उसे यह समालोचना समझती है;पर इसके विषय में और कोई जो कुछ कहता है उसे यह अपवाद, या व्यर्थ निन्दा समझती है। उदाहरण-यदि सभा कहे कि हिन्दी-अखबारों के सम्पादकों ने यूनीवरसिटी,अर्थात विश्वविद्यालय, के बरामदे में कदम नहीं रक्खा;अथवा उनमें सभा की खोज की रिपोर्ट पढ़ कर समझने की लियाकत नहीं;अथवा उनकी दृष्टि संकीर्ण है,वे उपकारी उद्योगों का विरोध करते हैं;वे तुच्छ समा- चारों पर लम्बे लम्बे लेख लिखते हैं,तो यह कहना विशुद्ध समालो -चना है। पर यदि अखबारों के सम्पादक या और कोई कहे कि सभा हिन्दी-पुस्तकों की खोज का काम अच्छी तरह नहीं करती; अथवा जो बात वह कहती है उसपर स्थिर नहीं रहती;अथवा, किसी किसी काम के लिए वह एक की जगह दो आदमी व्यर्थ रखती है, तो वह विशुद्ध अपवाद, अर्थात् व्यर्थ निन्दा, है !

[दिसम्बर १९०५]