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दृश्य-दर्शन

अर्थात भविष्यत् में जितने अँगरेज-अफसर चरखारी की जमीन में क़दम रक्खे उन्हें महाराज रत्न्सिंह की इस उदारता और आत्मत्याग का स्मरण रखना चाहिए। और उनका यथेष्ठ आदर और सम्मान करना चाहिए।

महाराज की इस सहायता के उपलक्ष्य में गवनमेंट ने २० हजार रूपये की खिलत दी। वंश-परम्परा के लिए ११ तोपों की सलामी का अधिकार दिया। फतेहपुर का परगना इनाम में मिला और दत्तक लेने का अधिकार भी गर्वनमेंट से प्राप्त हुआ। रींवा और बनारस के राजों ने भी गदर में गवर्नमेंट की खैरख्वाही की थी। पर उनको जितने की खिलत मिली, चरखारी नरेश को उससे दूने को मिली। चरखारी में रतनसागर नाम का जो बडा़ तालाव है, वह महाराज रत्न्सिंह ही के नाम का स्मरण दिलाता है।

महाराज रत्नसिंह की मृत्यु १८६० ईसवी में हुई । उनके बाद उनके पुत्र महाराज जयसिंह को चरखारी का राजासन मिला। उनके समय में लिखने लायक कोई विशेष बात नहीं हुई। १८८० ईसवी तक वे जिवित रहे। उनके मरणान्तर उनकी विधवा महारानी ने वर्तमान चरखारी नरेश महाराज मलखानसिंहजू देव को गोद लिया। उस समय आप की उम्र कोई आठ नौ वर्ष की थी। आप का जन्म १३ नवम्बर १८७० ईसवी का है। इस समय आपकी उम्र कोई ३७ वर्ष की है।

जब तक महाराज साहब वयस्क नहीं हुए,राज्य का काम-काज आप के पिता राव जुझारसिंहजू देव बहादुर चलाते रहे। महाराज