की शिक्षा का अच्छा प्रबन्ध किया गया। इंडिया-कौंसिल के मेम्बर थिओडर मारिसन साहब की निगरानी में आपने विद्याध्ययन किया । अंगरेज़ी में आपने यथेष्ट प्रतिपत्ति प्राप्त की। राजाओं को जिन विषयों की राजोचित शिक्षा मिलनी चाहिए, वह आपको अच्छी तरह मिली। वयस्क होने पर आपको, १८९२ में, राजासन प्राप्त हुआ। उसके दो वर्ष बाद आपको गवर्नमेंट से सनद मिली और फौजदारी के पूरे अधिकार भी दिये गये। अब आपको अपने राज्य में फांसी तक देने का अधिकार है। चरखारी-नरेश “सिपहदारु- ल्मुल्क” कहलाते आये हैं। १८७७ ईसवी में गवर्नमेंट ने भो इस पढ़वी का प्रयोग किया जाना स्वीकार किया। वर्तमान महाराजा साहब भी इस पदवी के भोक्ता हैं। गवर्नमेंट अपने कागज-पत्रों में इस पढ़वी का बराबर प्रयोग करती है।
महाराजा चरखारी राज्य-प्रबन्ध में यथेष्ट कुशल हैं। राज का जो धर्म है उसे आप अच्छी तरह पालन करते हैं। जहां निग्रह को ज़रूरत होती है वहां दया दिखाना आप राजनीति के खिलाफ़ समझते हैं और जहां प्रसाद की जरूरत होती है वहां आप अपनी गुणप्राहकता और प्रजावात्सल्य का प्रमाण दिये विना नहीं रहते। क्योंकि प्रजारञ्जन ही राजा का सब से बड़ा कर्तव्य है। जो राजा कोप और अनुग्रह को यथा समय और यथा स्थान प्रकट करने में सङ्कोच नहीं करते उन्हीं को यथार्थ राजा कहना चाहिए। आपने अपने राज्य में अनेक सुधार किये हैं, जिनके उपलक्ष्य में गवर्नमेंट ने आप को के०सी०आई० ई० की उच्च पदवी से विभूषित किया है। महाराजा बहादुर को