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पृष्ठ:दृश्य-दर्शन.djvu/७७

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दृश्य-दर्शन

आया उसका वर्णन हमसे नहीं हो सकता। हमने कितने ही मन्दिरों में झाकियां देखीं और कितने ही कीर्तन सुने, परन्तु भक्ति-भाव का जैसा उद्रेक वहां हमारे अन्तःकरण में हुआ वैसा और कहीं नहीं हुआ था। मनुष्य कैसा ही नास्तिक क्यों न हो--नास्तिक क्या चाहे वह मूर्तिमान चार्वाक ही क्यों न हो ऐसा भक्ति-भाव और कोमल कीर्तन सुनकर उसका भी हृदय द्रवीभूत हुए बिना नहीं रह सकता। जिन लड़कों ने पूर्वोक्त संस्कृत-पद्य गाया था उन्हें उसकी यथा-रीति शिक्षा दो गई थी। यही लड़के महाराजा साहब की रामलीला में शरीक होते थे और अपने पात्रगत क्रिया-कलापों से दर्शकों और श्रोताओं को मनोमुग्ध करते थे।

चरखारी बहुत ही रमणीक स्थान है। वहां की आबोहवा तन्दुरुस्ती के लिए बहुत लाभदायक है। शहर छोटा,परन्तु खूब साफ सुथरा है। बड़े बड़े कई एक तालाब हैं। सब पक्के बँधे हुए हैं। उनमें कमल बहुत होता है। खिले हुए अनन्त कमल-पुष्पों से तालाबों का अधिकांश जल बिलकुल ढक जाता है। कमलों की ऋतु में इन तालाबों का दृश्य बहुत ही भला मालूम होता है। चरखारी के चारों तरफ छोटी छोटी पहाड़ियां हैं। शहर उनके बीच में बसा हुआ है। उन्हीं में से एक पहाड़ी के ऊपर चरखारी का प्रसिद्ध किला है।

महागजा के महलों के बाद देखने लायक इमारत चरखारी की कोठी है। यह कोठो तालाब के ठोक किनारे बनी हुई है। तालाब का पानी कोठी की दीवारों से टकराया करता है। इस कोठी