चरखारी में महागजा साहब के फ्रीलखाने में एक हाथी बहुत ही स्थूलकाय है। उसका पेट प्रायः ज़मीन को छूता है। इतना मोटा हाथी हमने और कहीं नहीं देखा। देहली दरबार में सैकड़ों हाथी गये थे। यह भी गया था लोग इसे बड़े चाव से देखते थे।
चरखारी से लगी हुई एक नई बस्ती है। राव साहब ही के प्रबन्ध से वह आबाद हुई है। वहां बाज़ार लगता है और गल्ले वगैरह का बड़ा व्यापार होता है। वहां एक बहुत अच्छे तालाब के सामने विहारीजी का एक आलीशान मन्दिर है। महाराजा साहब प्रतिदिन शाम को वहां देव-दर्शन करने जाते हैं। हमारे मित्र पण्डित युगलकिशोर वाजपेयी हमें भी एक दिन दर्शन कराने ले गये। वहीं राव बहादुर दीवान जुझारसिंहजूदेव पहले ही से उपस्थित थे। मन्दिर में कीर्तन हो रहा था, राव साहब ही के बनाये हुए पद गाये जा रहे थे। इस भक्ति-भाव से, इस प्रेम-प्रवणता से, इस तालस्वर से कीर्तन हो रहा था कि हमारी सारी इन्द्रियां कर्णेन्द्रिय में इकट्ठी हो गई और हम सहसा भक्ति रसार्णव में निमग्न हो गये। कुछ देर बाद महाराजा साहब पधारे और दर्शन, प्रदक्षिणा आदि करके चले गये । अन्त में दस बारह लड़के, मन्दिर के नीचे सीढ़ियों के पास, ठाकुरजी के सम्मुख एक कतार में खड़े हो गये। उन्होंने बड़े ही मीठे स्वर में “जगन्नाथ स्वामी नयनपथगामी भवतु मे"-गाना आरम्भ किया। उसे सुनकर, सच मानिए, हमें आत्मविस्मृति-सी हो गई। शरीर में रोमञ्च और आँखों में अश्रु- सञ्चार हो आया। भक्ति के उन्मेष में उस दिन हमें जितना आनन्द