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दृश्य-दर्शन

१६१३ में अंगरेजों ने भी अपनी कोठी यहां खोली। टीपू ने कालीकट को कई बार जीता और उसका विध्वंस । नगर को उसने जला दिया। अनेक स्त्रियों की गर्दन पर उनके बच्चों को बांध कर, दोनों को एक साथ हो, फांसी देदी और शेष को हाथियों के पैरों से कुचला दिया ! परन्तु पीछे से टीपू के लेनापति को ९०० आदमियों के साथ अगरेजों ने कैद कर लिया और १७९२ ईस्वी में मला भार सड़ा के लिए अंगरेजी झण्डे की छाया में आगया।

शङ्कराचार्य की जन्मभूमि झाल्डी गांव भी मलावार ही में है। वह पूर्णा नदी के किनारे है। इस नदी का पानी इतना स्वच्छ, मधुर और रोगहारक है कि शायद ही और किसी नदी, तालाब या कुंर्वे का होगा। दूर दूर के आदमी इसका जल पीने के लिए ले जाया करते हैं। इस नदी के किनारे सैकड़ों गांव हैं। इन गांवों के निवासी इस नदी में अकसर सुबह से शाम तक गोते लगाया करते हैं। भावुक ब्राह्मण दिन भर इसके तट पर बैठे हुए सन्ध्या बन्दन और पूजापाठ में निमग्न रहा करते हैं। मालाबारी लोग, स्त्रियों और बच्चों समेत, त्रिकाल स्नान करते हैं । मलाबार की अबो हवा गरम होने के कारण स्नानाधिक्य से उनको कोई कष्ट नहीं होता। यहां की नदियों और तलाबों में मिट्टी का सर्वदा अभाव रहता है। इस कारण, बार बार नहाने से, इन लोगों के कपड़े मैले नहीं होते।

मालाबार का जो भाग अधिक पार्वतीय है वह नारियल के निबिड़ जंगलों से भरा हुआ है। समुद्र के किनारे किनारे सिवा नारियल के ऊँचे ऊँचे वृक्षों के और कुछ नज़र नहीं आता। नारियल का वहां