पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१०१

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सिहासन पर बैठी हुई लाडिली की मूरत कहॉ स आई *और उस आइने (शीशे) वाले मकान में जिसमें कमलिनी लाडिली तथा हमारे ऐयारों की सी मूरतों ने हमें धोखा दिया क्या था? जब हम दोनों उसके अन्दर गये तो उन मूरतों को देखा जो नालियों पर चला करती थीं "" मगर ताज्जुब है कि गोपाल-(बात काट कर) वह सब कार्रवाई मेरी थी। एत तौर पर मैं आप लोगों को कुछ कुछ तमाशा भी दिखाता जाता था। वे सब मूरतें बहुत पुराने जमाने की बनी हुई है मगर मैंने उन पर ताजा रंगरोगन चढा कर कमलिनी लाडिली वगैरह की सूरतें बना दी थीं। इन्द-ठीक है मेरा भी यही खयाल था। अच्छा एक बात और बताइये! गोपाल-पूछिये। इन्द्र-जिस तिलिस्मी मकान में हम लोग हॅसते हँसते कूद पड़े थे उसमें कमलिनी के कई सिपाही भी जा फसे थे और गोपाल-जी हा ईश्वर की कृपा से वे लोग कैदखान में जीते जागते पाये गये और इस समय जमानिया में मौजूद है। उन्हीं में के एक आदमी को दारोगा ने गठरी बाँध कर रोहतासगढ़ के किले में छोडा था जब मैं कृष्णाजिन्न बन कर पहिले पहिल वहा गया था। इन्द्रजीत-बहुत अच्छा हुआ, उन चारों की तरफ से मुझे बहुत ही खुटका था। बीरेन्द्र (गोपालसिह से) आजदलीपशाह की जुबानी जो कुछ उसका किस्सा सुनने में आया उससे हमें बडा ही आश्चर्य हुआ। यद्यपि उसका किस्सा अभी तक समाप्त नहीं हुआ और समाप्त होने तक शायद और भी बहुत सी बातें मालूम हो परन्तु इस बात का ठीक ठीक जवाब तो तुम्हारे सिवाय दूसरा शायद कोई नहीं दे सकता कि तुम्हें कैद करने में मायारानी ने कौन सी ऐसी कार्यवाई की कि किसी को पता न लगा और सभी लोग धोखे में पड गये यहाँ तक कि तुम्हारी समझ में भी कुछ न आया और तुम चारपाई पर से उठा कर कैदखाने में डाल दिये गये। गोपाल-इसका ठीक ठीक जवाब तो मैं नहीं दे सकता। कई बातों का पता मुझे भी नहीं लगा क्योंकि में ज्यादा देर तक बीमारी की अवस्था में पड़ा नहीं रहा बहुत जल्द बेहोश कर दिया गया। मैं क्योंकर जान सकता था कि कम्बख्त मायारानी दवा के बदले मुझे जहर पिला रही है, मगर मुझको विश्वास है कि दलीपशाह को इसका हाल बहुत ज्यादे मालूम हुआ होगा। जीत-खैर आज के दर्बार में और भी जो कुछ है मालूम हो जायगा। कुछ देर तक इसी तरह की बातें होती रहीं। जब महाराज उठ गये तब सब कोई अपने ठिकाने चले गये और कारिन्दे लोग दर्रार की तैयारी करने लगे। भोजन इत्यादि से छुट्टी पाने के बाद दोपहर होते होते महाराज दयोर में पधारे। आज का दर भी कल की तरह रौनकदार था और आदमियों की गिनती बनिस्बत कल के आज बहुत ज्यादे थी। महाराज की आज्ञानुसार दलीपशाह ने इस तरह अपना किस्सा बयान करना शुरू किया 'मैं बयान कर चुका हू कि मैंने अपना घोडा गिरिजाकुमार को देकर दारोगा का पीछा करने के लिए कहा. अस्तु जब वह दारोगा के पीछे चला गया तब हम दोनों में सलाह होने लगी कि अब क्या करना चाहिए, अन्त में यह निश्चय हुआ कि इस समय जमानियानजाना चाहिए बल्कि घर लौट चलना चाहिये। 'उसी समय इन्द्रदेव के साथी लोग भी वहा आ पहुचे। उनमें से एक का घोड़ा मैने ले लिया और फिर हम लोग इन्द्रदेव के मकान की तरफ रवाना हुए। मकान पर पहुच कर इन्द्रदेव ने अपने कई जासूसों और ऐयारों को हर एक बातों का पता लगाने के लिए जमानिया की तरफ रवाना किया। मै भी अपने घर जाने को तैयार हुआ मगर इन्द्रदेव ने मुझे रोक "यद्यपि मै कह चुका है कि अपने किस्से में भूतनाथ का हाल ययान नकरूँगा तथापि मौका पड़ने पर कहीं को लाचारी से उसका जिक्र करना ही पडेगा, अस्तु इस जगह यह कह देन, जरूरी जान पडता है कि इन्द्रदेव के मकान ही 'देखिये नौवा भाग दूसरा बयान।

  • देखिये सोलहवा भाग छठवा वयान ।
  • देखिये बारहवा भाग सातवा बयान।

यन्द्रकान्ता सन्तति माग२४ १००३