पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१२५

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Garet पहर --मुझ तो भग पिये बिना किसी दिन चैन ही नहीं पडता । बहादुर-(खुश होकर) वाह वाह वाह बडी खुशी की बात तुमने सुनाई तब तो हम तुम दोनों एक है बस आज से हमारे तुम्हार दोस्ती हो गई। मालूम होता है तुम भी बाह्मणया क्षत्री हा। पहरे - हॉ मैं क्षत्री हूँ। बहादुर - आहा हा 1 फिर क्या कहना है आओ जरा गल गल ता मिल लें ॥ पहरे - (मन में ) अब क्या है इससे नरेन्द्रसिह की दौलत का पता लगाना बहुत सहज है अगर वह दौलत मिल जाय तो मैं जन्म भर कमाने से छुट्टी पाऊँ और अपने साथियों को अगूठा दिखा किनारे हो जाऊ । बहादुर - बस बस सोचते क्या हो । आआ दोस्त जल्दी गले मिलो अब जी नहीं मानता ॥ पहरवाले न ताला खोला खुशी खुशी अन्दर गया और वहादुरसिह से खूब गल गल मिला। वहादुर - (मन में ) फॉसा साल को अब क्या है ॥ पहर - भाई बहादुरसिह अब तो हमारे तुम्हारे दास्ती हो ही गई मगर इस दोस्ती को छिपाये रखना चाहिये क्योंकि हमारा सर्दार जान गया कि इन दोनों में दास्ती हो गई है तो झट मुझे यहाँ स हटा देगा और किसी दूसरे को यहाँबैठादेगा बहादुर- उसकी एसी तैसी कभी मालूम ता हागा नहीं कि इन दोनों में दोस्ती है जब वह आवेगा तो घडी भर तक तुमको गालियाँ ही दिया करूँगा तब कैसे समझेगा? पहर - हाँ ठीक है ऐसा ही करना में भी ऊपर क मन से तुम पर सख्त पहरा रक्खूगा। अब उसके आने का वक्त हुआ है मै फिर ताला बद करके बाहर जा बेटता हूँ। बहादुर - जरूर जरूर । बहुत जल्दी । पर भला यह तो बता दो.कि तुम्हारा नाम क्या है? पहरे-मेरा नाम भालासिह है। बहादुर - वाह भाइ भालासिह हकीकत मे तुम बड ही भाले हा | कुछ कपट जरा भी तुम्हारे चित्त में नहीं है । पहरेवाला भोलासिह बहादुरसिह से दुवारा गले गले मिलके वाहर बैठ गया साथ ही बहादुरसिह उससे धीरे धीरे बातचीत भी करने लगा। बहादुर -- क्यों दोस्त भालासिह क्या कभी सूरज या चन्दमा का दर्शन न कराओग? इस अधेरे में बेठे बैठे तो कई दिन हो गया . भोलासिह - दोस्त घबराओ मत बन पडा ता आज ही तुम्हें इस तहखान के बाहर ले चलूगा उहादुर - वाह वाह तव तो बडा मजा हो जायेगा । भोला- क्यों दोस्त क्या ही अच्छी बात हा अगर नरन्दसिह की गाडी हुई दौलत हम तुम दोनों निकाल लें और जन्म भर खुशी से गुजारा करें । वहादुर- नहीं नहीं नहीं ऐसा न हागा मैलालच को अपने पास भी कभी न आने दूंगा |हॉ तुमको अगर जरूरत हो तो चलो बता दूं जितना मर्जी हो निकाल ला मगर मैं एक पैसा न छूऊँगा। भोला -- अच्छा हमीं का बता दी। यहादुर -- आज ही चला भला यह कौन सी बडी बात है । और फिर वहाँ तो इतनी दौलत है कि कोई लाख दो लाख निकाल ले तो भी कुछ पता न लगे। भाला - ओफ ओह | अच्छा तो फिर आज ही मौका पाकर हम तुम निकल चलेंगे। बहादुर- तुम्हारा अफसर तो अभी तक नहीं आया। भाला - हो आज देर हो गई अब उसके आने की कोई उम्मीद भी नहीं है। बहादुर - तो चलो फिर बाहर की हवा खाये। भोला-घडी भर और ठहरो तब तक अगर न आया ता फिर आज न आवेगा हॉ यह तो कहो कि नरेन्द्र की दौलत गडी कहाँ है? बहादुर -जहा उसका मकान है उसके दो कोस पूरव हटके, मगर मुश्किल तो यह है कि मैं कमजोर आदमी न मालूम के दिन में वहा पहुँचूँगा ! भोला - नहीं नही, मै जाकर दो घोडे ल आऊँगा। हमार सर्दार के यहाँ जितन घोडे हैं सभी तज चलने वाले है सभों में से चुनकर दो घोर्ड ले आगा। कोई अगर हम लोगों का पीछा करेगा तो भी पकड न सकेगा। मगर तुम घोडे पर बैठ सकते हो कि नहीं? बहादुर - हॉ हॉ भला घोडे पर चढना मुझे न आवेगा । थोडी दर के बाद भोलासिह उस तहखाने के बाहर निकला और आधी रात जाने के पहिले ही कसे कसाये दो उम्दे घोडे लिये हुए आ पहुंचा। दोनों घोडों को तो बाहर एक दरख्त के साथ बॉधा और आप तहखाने में गया। बहादुरसिह को केद से निकाल कर बाहर ले आया और दोनों आदमी घोडे पर सवार हो पश्चिम की तरफ रवाना हुए। नरेन्द्र मोहिनी ११२७