पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१९०

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गिरफ्तारी का हुक्म दिया था न? बीर०-ठीक है मगर इस समय तो मैं ही आपके आधीन हूँ। नाहर०-ऐसा न समझो अगर तुम मुझे गिरफ्तार करने के लिए कहीं जाते और मेरा सामना हो जाता तो भी मै तुमसे आज ही की तरह मिल बैठता । बीरसिह तुम यह नहीं जानते कि यह राजा कितना बड़ा शैतान और बदमाश है, बेशक तुम कहोगे कि उसने तुम्हारी परवरिश की और तुम्हें बेटे की तरह मान कर ऊँचा मर्तबा दे रक्खा है मगर नहीं, उसने अपनी खुशी से तुम्हारे साथ ऐसा बर्ताव नहीं किया बल्कि मजबूर होकर किया। मै सच कहता हूँ कि वह तुम्हारा जानी दुश्मन है। इस समय शायद तुम मेरी बात न मानोगे मगर मैं विश्वास करता हूँ कि थोड़ी ही देर में तुम खुद कहोगे कि जो मै कहता था सब ठीक है। बीर०-(कुछ सोचकर) इसमें कोई शक नहीं कि राजाओं में जो जो बातें होनी चाहिए वे उनमें नहीं है मगर इस बात का कोई सबूत अभी तक नहीं मिला कि उसने मेरे साथ जो कुछ नेकी की लाचार होकर की। नाहर०-अफसोस कि तुम उसकी चालाकी को अभी तक नहीं समझे। यद्यपि कुँअर साहब की लाश की बात अभी बिल्कुल ही नई है।' चीर०-कुँअर साहब की लाश से क्या तात्पर्य है ? मैं नहीं समझा। नाहर०-खैर यह भी मालूम हो जायेगा पर अब मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ कि तुग मुझ पर सच्चे दिल से विश्वास कर सकते हो या नहीं ? देखो झूठ मत बोलना जो कुछ कहना हो साफ-साफ कह दो !! बीर०-बेशक आज की कार्रवाई ने मुझे आपका गुलाम बना दिया है मगर आपको अपना सच्चा दोस्त या भाई उसी समय समझूगा जब कोई ऐसी बात दिखला देंगे जिससे सावित हो जाय कि महाराज मुझसे खुटाई रखते हैं। नाहरo-बेशक तुम्हारा यह कहना बहुत ठीक है ओर जहाँ तक हो सकेगा मै आज ही सावित कर दूंगा कि महाराज तुम्हारे दुश्मन हैं और स्वय तुम्हारे ससुर सुजनसिह के हाथ से तुम्हें तबाह किया चाहते है। बीर०-यह बात आपने और भी ताज्जुब की कही। नाहर०-इसका सबूत तो तुमको तारा ही से मिल जायेगा। ईश्वर करे वह अपने बाप के हाथ से जीती बच गई हो। बीर०-(चौक कर) अपने बाप के हाथ से । नाहर०-हाँ सिवाय सुजनसिह के ऐसा कोई नहीं है जो तारा की जान ले तुम नहीं जानते कि तीन आदमियों की जान का भूखा राजा करनसिह कैसी चालबाजियों से काम निकाला चाहता है। वीर०-(कुछ सोच कर) आपको इन बातों की खबर क्योंकर लगी ? मैंने तो सुना था कि आप का डेरा नेपाल की तराई में है और इसी से आपकी गिरफ्तारी के लिए मुझे वहीं जाने का हुक्म हुआ था ? नाहर०-हॉ खबर तो ऐसी ही है कि मैं नेपाल की तराई में रहता हूँ मगर नहीं मेरा ठिकाना कहीं नहीं है और न कोई मुझे गिरफ्तार ही कर सकता है। खैर यह बताओ तुम कुछ अपना हाल भी जानते हो कि तुम कौन हो? बीर०-महाराज की जुबानी मैने सुना था कि मेरा बाप महाराज का दोस्त था और जगल में डाकुओं के हाथ मारा गया महाराज ने, दया करके मेरी परवरिश की और मुझे अपने लड़के के समान रक्खा । नाहर०-झूठ बिल्कुल झूठ (किनारे की तरफ देखकर) अब वह जगह बहुत ही पास है जहाँ हम लोग उतरेंगे। नाहरसिंह और वीरसिह में बातचीत होती जाती थी और नाव तीर की तरह बहाव की तरफ जा रही थी क्योंकि खेने वाले बहुत ही मजबूत और मुस्तैद थे! यकायक नाहरसिह ने नाव रोक कर किनारे की तरफ ले चलने का हुक्म दिया। माझियों ने वैसा ही किया। किश्ती किनारे लगी और दोनों आदमी जमीन पर उतरे। नाहरसिह ने एक माझी की कमर से तलवार लेकर बीरसिह के हाथ में दी और कहा कि इसे तुम अपने पास रक्खो शायद जरुरत पडे। उसी समय नाहरसिह की निगाह एक बहते हुए घडे पर पड़ी जो बहाव की तरफ जा रहा था। वह एक टक उसी की तरफ देखने लगा। घड़ा वहते बहते रुका और किनारे की तरफ आता हुआ मालूम पडा। नाहरसिंह ने बीरसिह की तरफ देखकर कहा-"इस घडे के नीचे कोई बला नजर आती है। वीर०-पेशक, मेरा ध्यान भी उसी तरफ है क्या आप उसे गिरफ्तार करेंगे? नाहर०-अवश्य ! चीर०-कहिये तो मैं किश्ती पर सवार होकर जाऊँ और उसे गिरफ्तार करूँ? नाहर०-नहीं नहीं, वह किश्ती को अपनी तरफ आते देखकर निकल भागेगा देखो मैं जाता हूँ। इतना कह कर नाहरसिह ने कपड़े उतार दिये केवल उस लगोटे को पहरे रहा जो पहिले से उसकी कमर में था। . देवकीनन्दन खत्री समग्र ११९२