पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१८९

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Gri पर में अपना पता तुम्हें दूंगा इस समय इतना ही कह देता हूँ कि तुम्हें बेकसूर समझ कर छुडान के लिए आया हूँ। चीर-सब आदमी जानते हैं कि मुझ पर कुँअर साहब का खून सावित हो चुका है तुम मुझ वकसूर क्या समझत हो ? आदमी०-मै खूब जानता हूँ कि तुम बेकसूर हा? वीर०-खैर अगर एसा भी हो तो यहाँ से छूट कर भी में महाराज के हाथ से अपन का क्योंकर बचा सकता हूँ? आदमी०-मैं इसके लिए भी बन्दोबस्त कर चुका हूँ। वीर०-अगर तुमन मेर लिए इतनी तकलीफ उठाई तो क्या मेहरबानी करके इसका बन्दोबस्त भी कर सकोगे कि निदोषी बन कर लोगों का अपना मुँह दिखाऊँ और कुँअर साहब का खूनी गिरफ्तार हा जाय ? क्योंकि यहां से निकल भागने पर लागों को मुझ पर और भी सन्देह होगा बल्कि विश्वास हा जाएगा कि जरूर मैन ही कुअर साहब का मारा है। आदमी०-तुम हर तरह स निश्चिन्त रहो इन बातों का में अच्छी तरह सोच चुका हूँ बल्कि मैं कह सकता हूँ कि तुम तारा के लिए भी किसी तरह की चिन्ता मत करो। वीर०-(चांक कर) क्या तुम मरे लिए ईश्वर हाकर आये हो इस समय तुम्हारी यातें मुझे हंद से ज्यादा खुश कर आदमी०-बस इससे ज्यादा में कुछ नहीं कहा थाहता और हुक्म दता हूँ कि तुम उटो ओर मेरे पीछ आओ। वीरसिंह उठा और उस आदमी के साथ-साथ सुरग की राह तहखाने के बाहर हो गया। अब मालूम हुआ कि कैदखान की दीवारों के नीचे-नीचे से यह सुरग खोदी गई थी। बाहर आन के बाद वीरसिंह न सुरग के मुहाने पर चार आदमी और मुस्तैद पाये जा उस लम्बे आदमी के साथी थे। ये छ आदमी वहाँ से रवाना हुए और ठीक घण्टे भर चलन के बाद एक छोटी नदी क किनारे पहुंचे। वहाँ एक छोटी सी डोंगी मौजूद थी जिस पर आठ आदमी हल्की-हल्की डॉड लिए मुस्तैद थे। अपन साथी के कहे मुताबिक बीरसिंह उस किश्ती पर सवार हुए और किश्ती बहाव की तरफ छोड दी गई। अब वीरसिंह को मौका मिला कि अपने साथियों की ओर ध्यान दे और उनकी आकृति को देखे। लॉवे कद के आदमी ने अपन चहर से नकाब हटाई और कहा चीरसिंह दखो और मेरी सूरत हमेशा के लिए पहिचान ला ।। वीरसिंह ने उसकी सूरत पर ध्यान दिया। रात बहुत थाडी वाकी थी तथा चन्द्रमा भी निकल आया था इसलिए बोरसिह को उसका पहिचानने और उसक अगों पर ध्यान दने का पूरा-पूरा माका मिला। उस आदमी की उम्र लगभग पैतीस वर्ष की होगी । उसका रंग गोरा बदन साफ,सुडौल और गठीला था चेहरा कुछ लम्बा सिर क वाल बहुत छोटे और घुघराल थे। ललाट _डा भोह काली और बारीक थी आँखें बडी बडी आर नाक लॉची मुंछ के बाल नर्म मगर ऊपर की तरफ चढ हुए थे। उसके दाँतों की पक्ति दुरुस्त थी उसके दानों होठ नर्म मगर नीच का कुछ मोटा था। उसकी गर्दन सुराहीदार और छाती चौडी थी। बॉह लन्धी और कलाइ मजबूत थी तथा वाजू और पिण्डलियों की तरफ ध्यान दने से बदन कसरती मालूम होता था। हर यातों पर गौर करके हम कह सकते हैं कि वह एक खूबसूरत और बहादुर आदमी था। बीरसिंह को उसकी सूरत दिल में भाई शायद हम सबब से कि वह बहुत ही खूबसूरत औरबहादुर था: बल्कि अवस्था के अनुसार कह सकते है कि वीरसिंह की बनिस्बत उसकी खूबसूरती बढी चढी थी मगर देखा चाहिए नाम सुनन पर भी वीरसिह की मुहब्बत उस पर उतनी ही रहती है या कुछ कम हो जाती है। वीर०-आपकी नेकी ओर अहसान की तारीफ में कहॉ तक करें आपने मर साथ वह वर्ताव किया है जो प्रेमी माई माई के साथ करता हैं आशा है कि अब आप अपना नाम भी कह कर कृतार्थ करेंगे। आदमी०-(चेहरे पर नकाब डाल कर) मेरा नाम नाहरसिंह है ! धीर०-(चौक कर)नाहरसिंह !जो डाकू के नाम से मशहूर है । नाहर०-हाँ। धीर०-(उसके साथियों की तरफ देख कर और उन्हें मजबूत और ताकतवर समझकर) मगर आपके चेहर पर कोई भी निशानी ऐसी नही पाई जाती जा आपको डाकू जालिम होना सावित करे। मैं समझता हूँ कि शायद नाहरसिंह डाकू कोई दूसरा ही आदमी होगा। नाहर०-नहीं नहीं वह मैं ही हूँ मगर सिवाय महाराज के और किसी के लिए भै बुरा नहीं । महाराज ने तो मरी वीरेन्द्र वीर ११९१