पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१९६

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दि राजा गद्दी पर बैठे और रिआया को जुल्म के पजे से छुडावे । रामदीन०--ईश्वर करे ऐसा ही हो। अच्छा आप जरा सा और ठहरें और इसी जगह बेखौफ बैठे रहे. मे घण्टे भर में लोट कर आऊँगा तब ताला खोल कर तहखाने में जाने के लिए कहूँगा क्योंकि महाराज अभी तहखाने में गये हुए है, ये निकल कर जा लें तब में निश्चिन्त होऊँ। इस तहखाने में जाने के लिए तीन दाजे हैं जिनमें एक तो सदर दर्शजा है, यद्यपि अब वह ईटों से चुन दिया गया है मगर फिर भी वहॉ हमेशा पहरा पडा करता है. दूसरे दर्ज की ताली महाराज के पास रहती है और एक तीसरी छोटी सी खिडकी है जिसकी ताली मेरे पास रहती है और इसी राह से लौडियों को आने जाने देना मेरा काम है। बायू०-हॉ यह हाल मैं जानता हूँ मगर यह तो कहाँ तुम तो जाकर घण्टे भर के बाद लौटोगे, तब तक यहा आकर मुझे कोई देख न लेगा? रामदीन०-जी नहीं, आप बेखौफ रहें. अब यहाँ आने वाला कोई नहीं है बल्कि इस बच्चे के रोने से भी किसी तरह का हर्ज नहीं है क्योंकि किले का यह हिस्सा बिल्कुल ही सन्न्य रहता है। यह कह कर रामदीन वहाँ से चला गया और घण्टे भर तक बाबू साहब को उन दोनों लौडियों से बातचीत करने का मौका मिला। यो ता घंटे भर तक कई तरह की बातचीत होती रही मगर उनमें से थोड़ी बातें ऐसी थीं जो हमारे किस्से से सबंध रखती है इसलिए उन्हें यहाँ पर लिख देना मुनासिब मालूम होता है। बाबू साहब०-क्या महाराज कल भी आये थे? एक लौडी०-जी हाँ मगर वह किसी तरह नहीं मानती, अगर पाँच सात दिन यही हालत रही तो जान जाने में कोई शक नहीं ऊपर से बीरसिह की गिरफ्तारी का हाल सुनकर वह और बदहवास हो रही है। बाबू साहब०-मगर बीरसिह तो कैदखाने से भाग गए। एक लौडी०-कब? बाबू साहब०-अभी घण्टा भर भी नहीं हुआ। एक लौडी०-आपको कैसे मालूम हुआ ? बाबू साहब०-इसके पूछने की कोई जरूरत नहीं । एक लौडी-तब तो आप एक अच्छी खुशखबरी लेकर आये है। आपसे कभी वीरसिह से मुलाकात हुई है कि नहीं? याबू साहब०-हॉ मुलाकात तो कई मर्तवे हुई है मगर धीरसिह मुझे पहिचानते नहीं। मैं बहुत चाहता हूँ कि दोस्ती पैदा कमगर कोई सबब ऐसा नहीं मिलता जिससे वह मेरे साथ मुहब्बत करें हॉ मुझे उम्मीद है कि तारा की बदौलत बेशक उनसे मुहब्बत हो जाएगी। एक लौंडी-कल पचायत होने वाली थी सो क्या हुआ? बाबू साहब-हॉ कल पचायत हुई थी जिसमें यहाँ के बड़े बड़े पदह जमींदार शरीक थे। सभों को निश्चय है कि असल में यह बीरसिह की है। बीरसिह लडने के लिए मुस्तैद हो तो वे लोग उनकी मदद करने को तैयार है। एक लोडीo-आपने भी कोई बन्दोबस्त किया है या नहीं ? बाबू साहब०-हों में भी इसी फिक्र में पड़ा हुआ हूँ। मगर लो देखो रामदीन आ पहुँचा । रामदीन ने पहुच कर खबर दी कि महाराज चले गए अब आप जायें। रामदीन ने उस कोठरी में एक छोटी सी खिडकी खोली जिसकी ताली उसकी कमर में थी और तीनों को उसके भीतर करके ताला बन्द कर दिया और आप बाहर बैठा रहा। बाबू साहब ने दोनों लौडियों के साथ खिड़की के अदर जाकर देखा कि हाथ में चिराग लिए एक लौडी इनके आने की राह देख रही है। यहाँ से नीचे उतरने के लिए सीढियों बनी हुई थीं बाबू साहब फिर नीचे उतरे, यहाँ की जमीन सर्द और कुछ तर थी। पुन एक कोठरी में पहुँच कर लौडी ने दर्वाजा खोला और बाबू साहब को साथ लिए एक बारहदरी में पहुंची। इस बारहदरी में एक दीवारगीर और एक हॉडी के अतिरिक्त एक मोमी शमादान भी जल रहा था। जमीन पर फर्श बिछा हुआ था बीच में एकामसहरी पर बारीक चादर ओढे एक औरत सोई हुई थी, पायताने की तरफ दो लौडियों पखा झल रही थीं पलग के सामने एक पीतल की चौकी पर चॉदी की तीन सुराही एक गिलास और एक कटोरा रक्खा हुआ था। उसके बगल में चॉदी की एक दूसरी चौकी थी जिस पर खून से भरा हुआ चाँदी का एक छोटा सा कटोरा एक देवकीनन्दन खत्री समग्र ११९